Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 473
________________ श्री स्थानांग सूत्र भगवान् अरिष्टनेमिनाथ के उत्कृष्ट चार सौ चौदह पूर्वधारी मुनि थे। यह चौदह पूर्वधारी मुनियों की उत्कृष्ट संख्या है। क्योंकि इनके चार सौ से अधिक चौदह पूर्वधारी मुनि कभी नहीं हुए थे। चार तारे, पुद्गलों का चय आदि, चतुष्प्रदेशी पुद्गल अणुराहा णक्खत्ते च त्तारे पण्णत्ते । पुव्वासाढे एवं चेव । उत्तरासाठे एवं चेव । जीवाणं चउट्ठाण णिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा । णेरइए णिव्वत्तिए, तिरिक्खजोणियणिव्वत्तिए मणुस्सणिव्वत्तिए देवणिव्वत्तिए । एवं उवचिणि वा, उवचिणंति वा, उवचिणिस्संति वा । एवं चिय उवचिय बंध उदीर वेय तह णिज्जरे चेव । चउपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता चउपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता । चउसमय द्विइया पोग्गला अणंता, चउगुणकाला पोग्गला अता जाव चउगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता ॥ २०८ ॥ ॥ चउत्थो उद्देसो समत्तो । चउठाणं चउत्थं अज्झयणं समत्तं ।। कठिन शब्दार्थ - अणुराहा णक्खत्ते- अनुराधा नक्षत्र, चउ त्तारे चार तारों वाला, चउट्ठाण चार स्थानों में, णिव्वत्तिए - निवर्तित-उत्पन्न होने योग्य, पावकम्मत्ताए पाप कर्म रूप से, चिय चय, उवचिय - उपचय, उदीर उदीरणा, वेय वेदन, णिज्जरे - निर्जरा, चडपएसिया - चार प्रदेशी, चउपएसोगाढा - चतुः प्रदेशावगाढ । - भावार्थ - अनुराधा नक्षत्र चार तारों वाला कहा गया है। इसी तरह पूर्वाषाढा नक्षत्र और उत्तराषाढा नक्षत्र भी चार चार तारों वाले कहे गये हैं। जीवों ने चार स्थानों में उत्पन्न होने योग्य कर्मपुद्गलों को पापकर्म रूप से सञ्चय किया है, सञ्चय करते हैं और सञ्चय करेंगे। यथा-नैरयिक निवर्तित यानी नरक में उत्पन्न होने योग्य, तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होने योग्य, मनुष्य गति में उत्पन्न योग्य और देवगति में उत्पन्न योग्य। इसी प्रकार बारबार उपचय किया है बारबार उपचय करते हैं और उपचय करेंगे। जिस तरह चय और उपचय का कथन किया है उसी तरह बन्ध, उदीरणा, वेदन और निर्जरा इनका भी तीन काल आश्री कथन कर देना चाहिए। चार प्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं । चतुः प्रदेशावगाढ यानी चार प्रदेशों को अवगाहन कर रहने वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं। चार समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं, चारगुण काला यावत् चार गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गये हैं। ।। चौथा उद्देशक समाप्त ॥ ।। चौथा स्थान चौथा अध्ययन समाप्त ॥ ॥ श्री स्थानांग सूत्र भाग - १ सम्पूर्ण ॥ ४५६ Jain Education International For Personal & Private Use Only - - www.jainelibrary.org

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