Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 जिणसंकासाणं सव्वक्खरसण्णिवाईणं जिणो इव अवितहवागरणाणं उक्कोसिया चउद्दसपुव्विसंपया हुत्था । समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेव मणुयासुराए परिसाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया हुत्था । हेट्ठिल्ला चत्तारि कप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता तंजहा - सोहम्मे, ईसाणे, सणंकुमारे, माहिदे । मल्झिल्ला चत्तारि कप्पा पडिपुण्ण चंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता तंजहा - बंभलोए, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे । उवरिल्ला चत्तारिकप्पा अद्धचंदसंठाणसंठिया पण्णत्ता तंजहा - आणए, पाणए, आरणे, अच्चुए।
___चार समुद्र, आवर्त और कषाय चत्तारि समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता तंजहा - लवणोदए, वारुणोदए, खीरोदए, घओदए । चत्तारि आवत्ता पण्णत्ता तंजहा - खरावत्ते, उण्णयावत्ते, गूढावत्ते, आमिसावत्ते । एवामेव चत्तारि कसाया पण्णत्ता तंजहा - खरावत्तसमाणे कोहे, उण्णयावत्त समाणे माणे, गूढावत्तसमाणा माया, आमिसावत्तसमाणे लोभे । खरावत्तसमाणं कोहं अणुपविढे जीवे कालं करेइ रइएस उववजई । उण्णयावत्तसमाणं माणं एवं चेव, गूढावत्तसमाणं मायं एवं चेव, आमिसावत्तसमाणं लोभं अणुपविढे जीवे कालं करेइ णेरइएसु उववज्जइ॥२०७॥
कठिन शब्दार्थ - उव्यायपुव्वस्स - उत्पाद पूर्व की, चूलियाव्रत्यु - चूलिका वस्तु, कव्वे - . काव्य, गज्जे - गद्य, पजे - पद्य, कत्थे - कथ्य, गेये - गेय, चोहसपुवीणं - चौदह पूर्वो के धारक मुनियों की, सव्वक्खरसण्णिवाईणं - सर्वाक्षर सन्निपाती मुनियों की, जिणसंकासाणं - सर्वज्ञ के समान, अवितहवागरणाणं- यथातथ्य प्रश्नों का उत्तर देने वाले मुनियों की, वाइसंपया - वादियों की संपत्ति, अद्धचंदसंठाणसंठिया - अर्द्धचन्द्र के आकार वाले, पडिपुण्ण - प्रतिपूर्ण, पत्तेयरसा - प्रत्येक रसभिन्न-भिन्न स्वाद वाले, लवणोदए - लवणोदक, वारुणोदए - वरुणोदक, खीरोदए - क्षीरोदक, घओदए - घृतोदक, आवत्ता - आवर्त, खरावत्ते - खरावत, उण्णयावत्ते - उन्नत्तावत, गूढावत्ते - गूढावर्त्त, आमिसावत्ते - आमिषावर्त।
भावार्थ - चौदह पूर्वो में से पहले उत्पादपूर्व की चार चूलिका वस्तु यानी अध्ययन कहे गये हैं । चार प्रकार के काव्य-ग्रन्थ कहे गये हैं यथा - गदय यानी जो छन्दोबद्ध न हो, जैसे आचाराङ्ग सूत्र का शस्त्रपरिज्ञा नामक पहला अध्ययन । पदय यानी छन्दोबद्ध हो, जैसे आचाराङ्ग सूत्र का आठवां विमोक्ष अध्ययन । कथ्य यानी कथा युक्त, जैसे ज्ञातासूत्र के अध्ययन । गेय यानी गाने योग्य, जैसे उतराध्ययन सूत्र का आठवां कापिलीय अध्ययन नैरयिक जीवों के चार समुद्घात कहे गये हैं यथा- वेदना
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