Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 454
________________ स्थान ४ उद्देशक ४ ४३७ गयी है। उसमें से एक चौभंगी है - १. मधु कुम्भ मधु पिधान २. मधु कुम्भ विष पिधान ३. विष कुम्भ मधु पिधान ४. विष कुम्भ विष पिधान। १. मधु कुम्भ मधु पिधान (ढक्कन)- एक कुंभ (घड़ा) मधु से भरा हुआ होता है। और मधु के ही ढक्कन वाला होता है। २. मधु कुम्भ विष पिधान - एक कुम्भ मधु से भरा हुआ होता है और उस का ढक्कन विष का होता है। .. ३. विष कुम्भ मधु पिधान - एक कुम्भ विष से भरा हुआ होता है और उस का ढक्कन मधु का होता है। ४.विष कुम्भ विष पिधान - एक कुंभ विष से भरा हुआ होता है और उसका ढक्कन भी विष का ही होता है।.. - कुम्भ की उपमा से चार पुरुष - . १. किसी पुरुष का हृदय निष्पाप और अकलुष होता है। और वह मधुरभाषी भी होता है। वह पुरुष मधु कुम्भ मधु पिधान जैसा होता है। ': २. किसी पुरुष का हृदय तो निष्पाप और अकलुष होता है परन्तु वह कटुभाषी होता है। वह मधु कुम्भ विष पिधान जैसा है। ३. किसी पुरुष का हृदय कलुषता पूर्ण है। परन्तु वह मधुरभाषी होता है। वह पुरुष विष कुम्भ मधु पिधान जैसा होता है। ४. किसी पुरुष का हृदय कलुषता पूर्ण है और वह कटुभाषी भी है। वह पुरुष विष कुम्भ विष पिधान जैसा है। चतुर्विध उपसर्ग . चउव्विहा उवसग्गा पण्णत्ता तंजहा - दिव्या, माणुस्सा, तिरिक्खजोणिया, आयसंचेयणिज्जा । दिव्या उवसग्गा चउविहा पण्णत्ता तंजहा - हासा, पाओसा, वीमंसा, पुढोवेमाया ।माणुस्सा उवसग्गा चउविवहा पण्णत्ता तंजहा - हासा, पाओसा, वीमंसा, कुसीलपडिसेवणया । तिरिक्खजोणिया उवसग्गा चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा - भया, पाओसा, आहारहेडं, अवच्चलेणसारक्खणया । आयसंचेयणिज्जा उवसग्गा चउव्विहा पण्णत्ता तंजहा - घट्टणया, पवडणया, थंभणया, लेसणया॥१९९॥ - कठिन शब्दार्थ - उवसग्गा - उपसर्ग, आयसंचेयणिज्जा - आत्मसंचेतनीय-अपने आप द्वारा उत्पन्न किये हुए, हासा - हास्य से, पाओसा- द्वेष से, वीमंसा - ईर्ष्या से, पुढोवेमाया - विविध प्रकार से, कुसील पडिसेवणया - कुशील सेवन से, अवच्चलेण सारक्खणया - अपने बच्चों की और स्थान : Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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