Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 466
________________ स्थान ४ उद्देशक ४ उपचार से क्रोधादि शरीर की उत्पत्ति का निमित्त रूप से कथन किया जाता है। शरीर की बनावट की शुरूआत होना उत्पत्ति कहलाता है और शरीर बनकर पूर्ण हो जाना निवृत्ति कहलाता है। धर्म द्वार, नरकादि आयुष्य बांधने के कारण चत्तारि धम्मदारा पण्णत्ता तंजहा- खंती, मुत्ती, अज्जवे, महवे । चउहि ठाणेहिं जीवा जेरइयत्ताए कम्मं पगरेंति तंजहा - महारंभयाए, महापरिग्गहयाए, पंचेंदियवहेणं, कुणिमाहारेणं । चउहि ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणियत्ताए कम्मं पगरेंति तंजहा - माइल्लयाए, णियडिल्लयाए, अलियवयणेणं, कूडतुलकूडमाणेणं । चउहि ठाणेहिं जीवा मणुस्सत्ताए कम्मं पगरेंति तंजहा - पगइभद्दयाए, पगइविणीययाए, साणुक्कोसयाए, अमच्छरियाए । चउहिं ठाणेहिं जीवा देवाउयत्ताए कम्मं पगरेंति तंजहा - सरागसंजमेणं, संजमासंजमेणं, बालतवोकम्मेणं, अकामणिग्जराए । चतुर्विध वाद्य, नाटक, गीत, मल्ल अलंकार, अभिनय आदि चउबिहे वजे पण्णत्ते तंजहा - तते, वितते, घणे, असिरे । चउविहे णडे पण्णते तंजहा - अंचिए, रिभिए, आरभडे, भिसोले (भसोले) । चउविहे गेये. पण्णते तंजहा - उक्खित्तए, पत्तए, मंदए, रोविंदए। चउविहे मल्ले पण्णत्ते तंजहा - गंथिमे, वेढिमे, पूरिमे, संघाइमे । चउविहे अलंकारे पण्णत्ते तंजहा - केसालंकारे, वत्थालंकारे, मल्लालंकारे, आभरणालंकारे । चउविहे अभिणए पण्णत्ते तंजहा - दिटुंतिए, पांडुसुए, सामंतोवणिए, लोगमझावसिए । सणंकुमार माहिंदेसु णं कप्पेसु विमाणा चउवण्णा पण्णत्ता तंजहा - णीला, लोहिया, हालिद्दा, सुक्किला । महासुक्कसहस्सारेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं चत्तारि रयणीओ इं उच्चत्तेणं पण्णत्ता॥२०५॥ कठिन शब्दार्थ - धम्मदारा - धर्मद्वार, पंचेंदियवहेणं - पंचेन्द्रिय जीवों की घात से, कुणिमाहारेणं - मांसाहार से, माइल्लयाए - माया करने से, णियडिल्लाए - निकृति-ढोंग एवं गूढमाया करके दूसरों को ठगने की चेष्टा करने से, अलियवयणेणं - अलीक वचन-झूठ बोलने से, कूडतुलकूडमाणेणं - खोटा तोल खोटा माप करने से, पगइभहयाए - प्रकृति की भद्रता से, - पगइविणीययाए - प्रकृति की विनीतता से, साणुक्कोसयाए- सानुक्रोश-दया और अनुकम्पा के परिणामों से, अमच्छरियाए - अमत्सर-ईर्ष्या न करने से, संजमासंजमेण-संयमासंयम-देशविरति का पालन करने से, बालतवोकम्मेणं- बाल तप करने से, अकाम णिजराए.- अकाम निर्जरा करने से, वजे - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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