Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 460
________________ - स्थान ४ उद्देशक ४ वाला नहीं होता। उसी प्रकार मुनि भी स्वभाव से गंभीर होता है। ज्ञानादि रत्नों से पूर्ण होता है। एवं कैसे भी संकट में मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करता। - आकाश- जैसे निराधार होता है उसी प्रकार साधु भी आलम्बन रहित होता है। वृक्ष पंक्ति - जैसे सुख और दुःख में कभी विकृत नहीं होती। उसी प्रकार समता भाव वाला साधु भी सुख दुःख के कारण विकृत नहीं होता। भ्रमर - जैसे फूलों से रस ग्रहण करने में अनियत वृत्ति वाला होता है। तथा स्वभावतः पुष्पित फूलों को कष्ट न पहुंचाता हुआ अपनी आत्मा को तृप्त कर लेता है। इसी प्रकार साधु भी गृहस्थों के यहां से आहार लेने में अनियत वृत्ति वाला होता है। गृहस्थों द्वारा अपने लिये बनाये हुए आहार में से, उन्हें असुविधा न हो इस प्रकार, थोड़ा थोड़ा आहार लेकर अपना निर्वाह करता है। .. मग - जैसे मृग वन में हिंसक प्राणियों से सदा शङ्कित एवं त्रस्त रहता है। उसी प्रकार साधु भी दोषों से शङ्कित रहता है। पृथ्वी - जैसे सब कुछ सहने वाली है। उसी प्रकार साधु भी सब परीषह और उपसर्गों को सहने वाला होता है। कमल - जैसे जल और पंक (कीचड़) में रहता हुआ भी उन से सर्वथा पृथक् रहता है। उसी प्रकार साधु संसार में रहता हुआ भी निर्लिप्त रहता है। सूर्य - जैसे सब पदार्थों को समभाव से प्रकाशित करता है। उसी प्रकार साधु भी धर्मास्तिकायादि रूप लोक का समान रूप से ज्ञान द्वारा प्रकाशन करता है। पवन - जैसे पवन अप्रतिबन्ध गति वाला होता है। उसी प्रकार साधु भी मोह ममता से दूर रहता हुआ अप्रतिबन्ध विहारी होता है। . बुद्धि के चार भेद-१. औत्पातिकी २. वैनयिकी ३. कार्मिकी ४. पारिणामिकी। १. औत्पातिकी - नटपुत्र रोह की बुद्धि की तरह जो बुद्धि बिना देखे सुने और सोचे हुये पदार्थों को सहसा ग्रहण के कार्य को सिद्ध कर देती है। उसे औत्पातिकी बुद्धि कहते हैं। .. २. वैनयिकी - नैमित्तिक सिद्ध पुत्र के शिष्यों की तरह गुरुओं की सेवा शुश्रूषा करने से प्राप्त होने वाली बुद्धि वैनयिकी है। ३. कार्मिकी - कर्म अर्थात् सतत अभ्यास और विचार से विस्तार को प्राप्त होने वाली बुद्धि कार्मिकी है। जैसे सुनार, किसान आदि कर्म करते करते अपने धन्धे में उत्तरोत्तर विशेष दक्ष हो जाते हैं। ४. पारिणामिकी - अति दीर्घ काल तक पूर्वापर पदार्थों के देखने आदि से उत्पन्न होने वाला आत्मा का धर्म परिणाम कहलाता है। उस परिणाम कारणक बुद्धि को पारिणामिकी कहते हैं। अर्थात् वयोवृद्ध व्यक्ति को बहुत काल तक संसार के अनुभव से प्राप्त होने वाली बुद्धि पारिणामिकी बुद्धि कहलाती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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