Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
स्थान ४ उद्देशक ४
४१९ 000000000000000000000000000000000000000000000000000
चार प्रकार के कट यानी चटाई की तरह बुने हुए पदार्थ कहे गये हैं । यथा - सुंब नामक तृण विशेष से बनी हुई चटाई, बांस के टुकड़ों से बनी हुई चटाई, चमड़े से गूंथ कर बनाई हुई, ऊन से बनी हुई चटाई (कम्बल)। इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - सुंबकट के समान, विदलकट के समान, चर्म कट के समान और कम्बल कट के समान । गुरु आदि में स्नेह की अपेक्षा ये चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में चार प्रकार की मच्छ (मत्स्य) गति के माध्यम से साधुओं की गोचरी विधि का वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् बारह प्रकार के गोलों के माध्यम से साधकों की संयम निष्ठा का परिचय दिया गया है। चार प्रकार के पत्र और चार प्रकार की चटाइयों का स्वरूप बताते हुए साधक की मोह छेदन की शक्ति और स्नेह बंधन की दृढ़ता का विवेचन किया गया है।
चतुर्विध पशु, पक्षी और क्षुद्रप्राणी . घउव्विहा चउप्पया पण्णत्ता तंजहा - एगखुरा, दुखुरा, गंडीपया, सणप्पया । चउव्विहा पक्खी पण्णत्ता तंजहा - चम्मपक्खी, लोमपक्खी, समुग्गपक्खी, विययपक्खी । चउबिहा खुडुपाणा पण्णत्ता तंजहा - बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया, सम्मुच्छिम पंचिंदिय तिरिक्खजोणिया॥१९१॥
. कठिन शब्दार्थ - चउप्पया - चतुष्पद, एगखुरा - एक खुर वाले, दुखुरा - दो खुर वाले, गंडीपया - गण्डीपद, सणप्पया - सनखपद, चम्मपक्खी - चर्मपक्षी, लोमपक्खी - रोम पक्षी, समुग्गपक्खी- समुद्गक .पक्षी, विययपक्खी - वितत पक्षी, खुडुपाणा - क्षुद्र प्राणी ।।
भावार्थ - चार प्रकार के चतुष्पद यानी स्थलचर तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय कहे गये हैं । यथा - एक खुर वाले घोड़ा आदि, दो खुर वाले गाय, भैंस, ऊंट आदि, गण्डीपद यानी जिनका पैर सुनार की एरण सरीखा चपटा हो जैसे हाथी, गेंडा आदि, सनखपद यानी जिनके पैर में नख हो जैसे सिंह, बिल्ली, कुत्ता आदि । चार प्रकार के पक्षी कहे गये हैं । यथा - चर्मपक्षी यानी चमड़े की पांख वाले, जैसे : चिमगादड़, चामचेड आदि। रोमपक्षी यानी रोम की पांख वाले जैसे हंस आदि। समुद्गक पक्षी यानी पेटी की तरह जिनकी पांखें हमेशा बन्द रहती हैं, विततपक्षी यानी जिनकी पांखें हमेशा खुली रहती हैं । समुद्गक पक्षी और विततपक्षी ये दोनों तरह के पक्षी ढाई द्वीप के बाहर होते हैं । चार प्रकार के क्षुद्रप्राणी कहे गये हैं । यथा - बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय और सम्मूच्छिम तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय । - विवेचन - चतुष्पद तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के चार भेद - १.. एक खुर २. द्विखुर ३. गण्डी पद ४. सनख पद। .
१. एक खुर - जिसके पैर में एक खुर हो। वह एक खुर चतुष्पद है। जैसे घोड़ा, गदहा आदि। २.द्विखुर - जिसके पैर में दो खुर हो। वह द्विखुर चतुष्पद है। जैसे - गाय, भैंस, ऊंट आदि।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org