Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 447
________________ ४३० श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 (२) भय संज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है - १. सत्त्व अर्थात् शक्ति हीन होने से। २. भय मोहनीय कर्म के उदय से। ३. भय की बात सुनने, भयानक वस्तुओं के देखने आदि से। ४. इह लोक आदि भय के कारणों को याद करने से। इन चार बोलों से जीव को भय संज्ञा उत्पन्न होती है। (३) मैथुन संज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है - १. शरीर के खूब हृष्टपुष्ट होने से। २. वेद मोहनीय कर्म के उदय से। ३. काम कथा श्रवण आदि से। ४. सदा मैथुन की बात सोचते रहने से। इन चार बोलों से मैथुन संज्ञा उत्पन्न होती है। (४) परिग्रह संज्ञा चार कारणों से उत्पन्न होती है - १. परिग्रह की वृत्ति होने से। २. लोभ मोहनीय कर्म के उदय होने से। ३. सचित्त, अचित्त और मिश्र परिग्रह की बात सुनने और देखने से। ४. सदा परिग्रह का विचार करते रहने से। इन चार बोलों से परिग्रह संज्ञा उत्पन्न होती है। चार गति में चार संज्ञाओं का अल्प बहुत्व - सब से थोड़े नैरयिक मैथुन संज्ञा वाले होते हैं। आहार संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं। परिग्रह संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा है और भय संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं। तिथंच गति में सब से थोड़े परिग्रह संज्ञा वाले हैं। मैथुन संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं। भय संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं और आहार संज्ञा वाले उनसे भी संख्यात गुणा हैं। . मनुष्यों में सब से थोड़े भय संज्ञा वाले हैं। आहार संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं। परिग्रह संज्ञा वाले उन से संख्यात गुणा हैं। मैथुन संज्ञा वाले उनसे भी संख्यात गुणा हैं। देवताओं में सब से थोड़े आहार संज्ञा वाले हैं। भय संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं। मैथुन संज्ञा वाले उनसे संख्यात गुणा हैं और परिग्रह संज्ञा वाले उनसे भी संख्यात गुणा हैं। उत्तान और गंभीर चत्तारि उदगा पण्णत्ता तंजहा - उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदए, उत्ताणे णाममेगे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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