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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं । यथा - कोई एक वृक्ष साल नाम का होता है और साल वृक्षों का ही उसका परिवार है यानी वह साल वृक्षों से ही घिरा हुआ है । कोई एक वृक्ष साल नाम का है किन्तु एरण्डवृक्षों का उसका परिवार है यानी वह एरण्ड वृक्षों से घिरा हुआ है । कोई एक वृक्ष एरण्ड नाम का है किन्तु वह साल वृक्षों के परिवार वाला है । कोई एक वृक्ष एरण्ड नाम का है और वह एरण्ड वृक्षों के परिवार वाला है । इसी तरह चार प्रकार के आचार्य कहे गये हैं । यथा - कोई एक आचार्य ज्ञान क्रिया आदि गुणों से युक्त होता है और ज्ञान क्रिया आदि गुणों वाले शिष्यों से युक्त होता है यथासुधर्मास्वामी एवं उनका जम्बूस्वामी आदि शिष्य परिवार। कोई एक आचार्य स्वयं ज्ञान क्रिया आदि गुणों से युक्त होता है किन्तु निर्गुण शिष्यों के परिवार से युक्त होता है श्री गर्गाचार्य तथा उनके शिष्य । कोई एक आचार्य स्वयं ज्ञान क्रिया आदि गुणों से रहित होता है किन्तु गुणवान शिष्यों के परिवार से युक्त होता है यथा-अझर मर्दनाचार्य एवं उनके शिष्य। कोई एक आचार्य स्वयं ज्ञान क्रिया आदि गुणों से रहित होता है और निर्गुण शिष्यों के परिवार से युक्त होता है यथा - गोशालक या निव आदि। अब यह चौभनी चार गाथाओं द्वारा बताई जाती है -
- जैसे साल वृक्षों में साल वृक्ष उनका राजा हो इसी तरह आचार्य सुन्दर हो यानी ज्ञान क्रिया आदि गुण सम्पन्न हो और शिष्य परिवार भी गुण सम्पन्न हो । यह प्रथम भङ्ग जानना चाहिए ॥१॥
. जैसे एरण्ड वृक्षों में साल वृक्ष उनका राजा हो इसी तरह आचार्य सुन्दर हो यानी ज्ञानादि गुण सम्पन्न हो किन्तु शिष्य परिवार असुन्दर यानी निर्गुण हो । यह दूसरा भङ्ग जानना चाहिए ॥ २ ॥
__ जैसे साल वृक्षों में एरण्ड वृक्ष उनका राजा हो इसी तरह आचार्य ज्ञानादि गुण रहित हो किन्तु शिष्य परिवार ज्ञानादि गुण सम्पन्न हो । यह तीसरा भङ्ग जानना चाहिए ॥ ३ ॥
जैसे एरण्ड वृक्षों में एरण्ड वृक्ष ही उनका राजा हो, इसी तरह निर्गुण आचार्य हो और निर्गुण ही शिष्य परिवार हो । यह चौथा भङ्ग जानना चाहिए ॥४॥
-: विवेचन - करंडक अर्थात् वस्त्र और आभरण (आभूषण) रखने का करडिया (पेटी)। प्रस्तुत सूत्र में चार प्रकार के करंडकों की उपमा से चारित्र, क्रिया और संयम संपन्नता की दृष्टि से चार प्रकार के आचार्य बताए हैं। इसके बाद के सूत्रों में शाल और एरण्ड वृक्षों की उपमा से संयम साधना और शिष्य वर्ग की दृष्टि से चार प्रकार के आचार्यों का विश्लेषण किया गया है।
मत्स्य वृत्ति समान भिक्षुवृत्ति चत्तारि मच्छा पण्णत्ता तंजहा - अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अंतचारी, मझचारी । एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता तंजहा - अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अंतचारी, मज्झचारी।
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