Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आसीविसस्स पुच्छा । पभू णं मंडुक्कजाइ आसीविसे भरहप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेणं विसपरिणयं विट्ठमाणिं सेसं तं चेव जाव करिस्संति वा । उरगजाइ आसीविसस्स पुच्छा । पभूणं उरगजाइ आसीविसे जंबूद्दीवप्पमाणमित्तं बोंदिं विसेणं सेसं तं चेव जाव करेस्संति वा । मणुस्सजाइ आसीविसस्स पुच्छा । पभूणं मणुस्सजाइ आसीविसे समयखेत्तप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेणं विसपरिणयं विसट्टमाणिं करेत्तए, विसए से विद्वत्ताए णो चेव णं जाव करिस्संति वा ॥ १८४ ॥
कठिन शब्दार्थ- पसप्पगा प्रसर्पक, अणुप्पण्णाणं- अनुत्पन्न - अप्राप्त, उप्पारत्ता - प्राप्त करने का उद्यम करने वाला, पुव्वुप्पण्णाणं- पूर्व उत्पन्न - प्राप्त, सोक्खाणं- सुख के लिए, अविप्पओगेणंअविप्रयोग-रक्षा के लिए उद्यम करने वाला, इंगालोवमे अग्नि सरीखा, मुम्मुरोवमे - मुर्मुर - भोभर सरीखा, कंकोवमे- कंकोपम, बिलोवमे - बिलोपम, पाणमंसोवमे - मातङ्गमांसोपम, जाइ आसीविसाजाति आशीविष, मंडुक - मेंढक, उरग- सर्प, विच्छुय बिच्छू, विसपरिणयं विष परिणत, विसट्टमाणिं फैले हुए, बोंदिं शरीर को, समयखेत्तप्पमाणमेत्तं समय क्षेत्र परिमाण । भावार्थ - चार प्रकार के प्रसर्पक कहे गये हैं यथा अनुत्पन्न यानी. अप्राप्त भोगों को प्राप्त करने का उदयम करने वाला, यह एक प्रसर्पक है। पूर्व उत्पन्न यानी प्राप्त भोगों के अविप्रयोग यानी रक्षा के लिए उदय करने वाला, एक प्रसर्पक है। अनुत्पन्न यानी अप्राप्त सुख के लिए उदयम करने वाला, एक प्रसर्पक है । पहले से प्राप्त हुए सुख की रक्षा के लिए प्रयत्न करने वाला, एक प्रसर्पक है ।
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नारकी के जीवों का चार प्रकार का आहार कहा गया है यथा अग्नि सरीखा, मुर्मुर यानी अग्निकण भोभर सरीखा, शीतल और बर्फ के समान शीतल । तिर्यञ्चों का आहार चार प्रकार का कहा गया है यथा - कंकोपम जैसे कंक पक्षी को मुश्किल से हजम होने वाला आहार भी सुभक्ष होता है और सुख से हजम हो जाता है । इसी प्रकार तिर्यञ्च का सुभिक्ष और सुखकारी परिणाम वाला आहार कंकोपम आहार है । बिलोपम जो आहार बिल की तरह गले में रस का स्वाद दिये बिना ही शीघ्र ही उतर जाता है वह बिलोपम आहार है । पाण यानी मातङ्गमांसोपम - जैसे अस्पृश्य होने से चाण्डाल का मांस घृणा के कारण बड़ी मुश्किल से खाया जाता है वैसे ही जो आहार मुश्किल से खाया जा सके वह मातङ्ग मांसोपम आहार है । पुत्रमांसोपम, जैसे स्नेह होने से पुत्र का मांस बहुत ही कठिनाई के साथ खाया जाता है । इसी प्रकार जो आहार बहुत ही मुश्किल से खाया जाय वह पुत्रमांसोपम आहार है । मनुष्य का आहार चार प्रकार का कहा गया है यथा अशन यानी दाल रोटी भात आदि आहार, पानं यानी पानी आदि पेय पदार्थ । खादिम यानी फल मेवा आदि, स्वादिम यानी पान, सुपारी, इलायची आदि। देवों का आहार चार प्रकार का कहा गया है यथा- शुभ वर्ण, शुभ गन्ध, शुभ रस और शुभ स्पर्श वाला आहार होता है ।
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स्थान ४ उद्देशक ४
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