Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 420
________________ ४०३ स्थान ४ उद्देशक ४ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 समान आहार २. दीर्घ काल के लिये दाहक होने से भोभर के समान आहार ३. शीत वेदना का उत्पादक होने से शीत आहार और ४. अत्यंत शीत वेदना कारक होने से हिम शीतल आहार। प्रथम दो प्रकार का आहार शीतयोनिक नैरयिकों का होता है और शेष दो प्रकार का आहार उष्णयोनिक नैरयिकों का होता है। तीसरी नरक तक उष्ण वेदनादायक अंगारोपम तथा भोमर तुल्य आहार होता है, चौथी, पांचवी नरकों में शीतयोनिकों के उष्णाहार एवं उष्णयोनिकों के शीताहार होता है तथा छठी, सातवीं नरकों में शीत आहार ही होता है। तिर्यंच चार प्रकार का आहार करते हैं - १. कंकोपम - कंकपक्षी के आहार की तरह सुभक्ष्य एवं सपाच्य आहार २. बिलोपम - बिल की तरह गले में बिना स्वाद के शीघ्र उतरने वाला आहार ३ पाणमांसोपम - चांडाल के मांस की तरह घृणित आहार ४. पुत्र मांसोपम - पुत्र के मांस की तरह खाने में अत्यंत कठिन आहार। मनुष्य का आहार चार प्रकार का होता है - १. अशन २. पान ३. खादिम और ४. स्वादिम। देव शुभ वर्ण, शुभ गंध, शुभं रस और शुभ स्पर्श वाले पदार्थों का आहार करते हैं। आशी शब्द का अर्थ है दाढ़, जिसकी दाढाओं में विष रहता है उसे आशीविष कहते हैं। आशीविष के दो भेद कहे हैं - १. जाति आशीविष - जिन प्राणियों में जन्म जात विष है वे जाति आशीविष कहलाते हैं और २. कर्म आशीविष - जिन प्राणियों में कर्मजन्य विष हो उन्हें कर्म आशीविष कहते हैं। जाति आशीविष मनुष्य और तिर्यंच में होता है जबकि कर्म आशीविष मनुष्य, तिर्यंच और देवों में होता है। व्याधि, चिकित्सा, चिकित्सक, पुरुष और व्रण भेद चउव्विहा वाही पण्णत्ता तंजहा - वाइए, पित्तिए, सिंभिए, सण्णिवाइए । चउव्विहा तिगिच्छा पण्णत्ता तंजहा - विज्जा, ओसहाइं, आउरे, परिचारए । चत्तारि तिगिच्छगा पण्णत्ता तंजहा - आयतिगिच्छगे णाममेगे णो परतिगिच्छगे, परतिगिच्छगे णाममेगे णो आयतिगिच्छगे, एगे आयतिगिच्छगे वि परतिगिच्छगे वि, एगे णो आयतिगिच्छगे णो परतिगिच्छगे।। चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - वणकरे णाममेगे णो वणपरिमासी, वणपरिमासी णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरे वि वणपरिमासी वि, एगे णो वणकरे णो वणपरिमासी । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - वणकरे णाममेगे णो वणसारक्खी, वणसारक्खी णाममेगे णो वणकरे, एगे वणकरे वि वणसारक्खी वि, एगे णो वणकरे णो वणसारक्खी । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - वणकरे णामगे णो वणसरोही, वणसरोही णाममेगे णो वणकरे एगे वणकरे वि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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