Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ३ उद्देशक ४
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कठिन शब्दार्थ - दुब्भिगंधाओ - दुरभिगंध-दुर्गध वाली, सुब्भिगंधाओ - सुरभिगंध-अच्छी गंध वाली, दुग्गइगामिणीओ - दुर्गति में ले जाने वाली, सुगइगामिणीओ - सुगति में ले जाने वाली, संकिलिट्ठाओ - संक्लिष्ट, असंकिलिट्ठाओ - असंक्लिष्ट, अमणुण्णाओ - अमनोज्ञ, मणुण्णाओमनोज्ञ, अविसुद्धाओ - अविशुद्ध, विसुद्धाओ - विशुद्ध, अप्पसत्थाओ - अप्रशस्त, पसत्थाओ - प्रशस्त, सीयलुक्खाओ - शीत रूक्ष, णिगुहाओ - स्निग्ध उष्ण, मरणे - मरण, बालपंडिय मरणेबाल पण्डित मरण. ठियलेस्से - स्थित लेश्या. पज्जवजायलेस्से - पर्यवजात लेश्या।
भावार्थ - तीन लेश्याएं दुरभिगन्ध यानी दुर्गन्ध वाली कही गई है यथा - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोतलेश्या। तीन लेश्याएं अच्छी गन्ध वाली कही गई है यथा - तेजोलेश्या, पद्मलेश्या
और शुक्ल लेश्या। इसी प्रकार क्रमशः तीन लेश्याएँ दुर्गति में ले जाने वाली और तीन लेश्याएँ सुगति में ले जाने वाली हैं। तीन लेश्याएँ संक्लिष्ट यानी संक्लेश परिणाम वाली और तीन लेश्याएँ असंक्लिष्ट यानी असंक्लेश परिणाम वाली हैं। तीन अमनोज्ञ और तीन मनोज्ञ हैं। तीन अविशुद्ध और तीन विशुद्ध हैं। तीन अप्रशस्त और तीन प्रशस्त हैं। तीन शीत रूक्ष और तीन स्निग्ध उष्ण हैं। ये तीन-तीन भेद लेश्याओं के कहे गये हैं। तीन प्रकार का मरण कहा गया है यथा - बालमरण, पण्डितमरण और बालपण्डितमरण । बालमरण तीन प्रकार का कहा गया है यथा - स्थित लेश्या यानी मरण के समय जो लेश्या है उसी लेश्या में उत्पन्न होना, संक्लिष्ट लेश्या यानी अशुभ लेश्या में मर कर फिर उससे भी अधिकं अशुभ लेश्या में उत्पन्न होना, पर्यवजात लेश्या यानी अशुभ लेश्या में से मर कर क्रमशः विशुद्ध होती हुई लेश्या में उत्पन्न होना। पण्डितमरण तीन प्रकार का कहा गया है यथा - स्थितलेश्या, असंक्लिष्ट लेश्या और पर्यवजात लेश्या। बालपण्डितमरण तीन प्रकार का कहा गया है यथा - स्थित ' लेश्या, असंक्लिष्ट लेश्या और अपर्यवजात लेश्या। . का विवेचन - तीन अप्रशस्त लेश्याओं की दुर्गंध और तीन प्रशस्त लेश्याओं की सुगंध के विषय में उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३४ में निम्न गाथाएं दी हैं -
जह गोमडस्स गंधो, सुणगमडस्स व जहा अहिमडगस्स। एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं॥
.- जैसे - गाय के मृत कलेवर की दुर्गंध, मरे हुए कुत्ते की गंध और मरे हुए सर्प की दुर्गंध जैसी होती है उससे भी अनंत गुण दुर्गंध अप्रशस्त कृष्णादि तीन लेश्याओं की होती है।
जह सुरभि कुसुम गंधो, गंधो वासाणं पिस्समाणाणं। एत्तो वि अणंतगुणो, पसत्य लेसाण तिण्हं पि॥
- सुगंधित पुष्पों की गंध और पीस कर चूर्ण किये जाते हुए चन्दन आदि द्रव्यों की जैसी गंध होती है उससे अनंत गुण अधिक गंध प्रशस्त तेजोलेश्या आदि तीन लेश्याओं की होती है।
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