Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अविसंवायणाजोगे । चउव्विहे मोसे पण्णत्ते तंजहा अणुज्जुयया, भाव अणुज्जुयया, विसंवायणाजोगे ।
प्रणिधान
स्थान ४ उद्देशक १
चडविहे पणिहाणे पण्णत्ते तंजहा- मणपणिहाणे, वइपणिहाणे, कायपणिहाणे, उवगरणपणिहाणे, एवं णेरड्याणं पंचिदिंयाणं जाव वेमाणियाणं । चउव्विहे सुप्पणिहाणे पण्णत्ते तंजहा- मणसुप्पणिहाणे जाव उवगरणसुप्पणिहाणे । एवं संजयमणुस्साण वि । चउव्विहे दुप्पणिहाणे पण्णत्ते तंजहा- मणदुप्पणिहाणे जाव उवगरणदुप्पणिहाणे, एवं पंचिदियाणं जाव वेमाणियाणं ॥ १३४ ॥
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कठिन शब्दार्थ - अत्थिकाया - अस्तिकाय, अरूविकाया अरूपीकाय, आमे - अपक्व - कच्चा, पक्कमहुरे - पके फल के समान मीठा, काउज्जुयया- काय ऋजुकता - काया की सरलता, भासुज्जुययाभाषा की सरलता, भावुज्जुयया भावों की सरलता, अविसंवायणा जोग - अविसंवादन योग-स्वीकार की हुई प्रतिज्ञा का यथार्थ रूप से पालन करना, अणुज्जुयया वक्रता, विसंवायणाजोगे - विसंवादना • योग, पणिहाणे - प्रणिधान-प्रयोग, उवगरणपणिहाणे - उपकरण प्रणिधानं, दुप्पणिहाणे - दुष्प्रणिधान, सुप्पणिहाणे- सुप्रणिधान ।
भावार्थ चार अस्तिकाय अजीव कही गई हैं यथा:
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धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और पुद्गलास्टिकाय । चार अस्तिकाय अरूपी कही गई हैं यथा अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय ।
धर्मास्तिकाय,
चार प्रकार के फल कहे गये हैं यथा कोई एक फल कच्चा होता है परन्तु कुछ मीठा होता है। कोई एक फल कच्चा होता है किन्तु पक्के फल के समान अत्यन्त मीठा होता है । कोई एक फ पक्का होता है किन्तु कुछ मीठा होता है । कोई एक फल पक्का होता है और अत्यन्त मीठा होता है । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष वय और श्रुत की अपेक्षा छोटा और अक् मधुरफल समान यानी अल्प उपशमादि गुण वाला । एक पुरुष वय और श्रुत की अपेक्षा छोटा किन्तु प्रधान उपशमादि गुण युक्त । एक पुरुष वय और श्रुत की अपेक्षा बड़ा किन्तु अल्प उपशमादि
गुण वाला । एक पुरुष वय और श्रुत की अपेक्षा बड़ा और प्रधान उपशम आदि गुण वाला ।
चार प्रकार का सत्य कहा गया है यथा काय ऋजुकता यानी काया की सरलता, भाषा की सरलता, भावों की सरलता और अविसंवादन योग यानी स्वीकार की हुई बात का यथार्थ रूप से पालन करना । चार प्रकार का झूठ कहा गया है यथा काया की वक्रता, भाषा की वक्रता, भावों की वक्रता और विसंवदनायोग यानी स्वीकार की हुई प्रतिज्ञा का यथार्थ रूप से पालन न करना। चार प्रकार का
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काय अणुज्जुयया, भास
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