Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
३३२
श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
. एकत्व, कति, सर्व भेद चत्तारि एक्का पण्णत्ता तंजहा - दव्विए एक्कए, माउय एक्कए, पज्जए एक्कए, संगहे एक्कए । चत्तारि कई पण्णत्ता तंजहा - दविय कई, माउय कई, पज्जव कई, संगह कई । चत्तारि सव्वा पण्णत्ता तंजहा - णाम सव्वए, ठवणसव्वए आएससव्वए णिरवसेससव्वए॥१५८॥
कठिन शब्दार्थ - एक्का - एक-एक, माउय - मातृकापद, पजए - पर्याय, कई - कति, पज्जवपर्यव, सव्वा - सर्व।
. भावार्थ - मुख्य रूप से चार पदार्थ एक एक कहे गये हैं यथा - सब द्रव्य एक हैं । मातृकापद यानी 'उप्पणे इ वा, विगमे इ वा, धुवे इ वा' इत्यादि पद अथवा अ, आ इत्यादि पद सब शास्त्रों के प्रवर्तक एवं व्यापक होने के कारण एक हैं । सब पर्याय एक हैं । समुदाय रूप संग्रह एक है । चार कति कहे गये हैं यथा - द्रव्य कति यानी द्रव्य के सचित्त अचित्त आदि अनेक भेद हैं । मातृका कति यानी मातृकापद में स्वर व्यञ्जन आदि भेद हैं । पर्यव कति यानी वर्ण गन्ध रस आदि अनेक पर्याय हैं । संग्रह कति यानी सालि, जौ, गेहूँ आदि अनेक प्रकार के धान्य का समूह है । ___ चार सर्व कहे गये हैं यथा - नाम सर्व यानी जिसका नाम 'सर्व' रखा गया हो । स्थापना सर्व यानी किसी पाशे आदि में 'सर्व' की स्थापना कर देना । आदेश सर्व यानी उपचार से किसी वस्तु को कहना, जैसे रखे हुए घी में से बहुत घी खा लेने पर और थोड़ा बाकी बच जाने पर यह कहना कि 'सारा घी खा लिया' इत्यादि । निरवशेष सर्व यानी सब में घटित होने वाली कोई बात कहना, जैसे देव अनिमेषदृष्टि यानी पलक रहित दृष्टि वाले होते हैं । वे आंख नहीं टमकारते हैं ।
विवेचन - कति का अर्थ है कितना । यह बहुवचनान्त शब्द है । यह प्रश्न करने में आता है अथवा यहां पर द्रव्य अर्थ में इसका प्रयोग किया गया है । किसी किसी प्रति में 'सव्वा' के स्थान में 'सच्चा' पाठ है । 'सच्चा' का अर्थ है सत्य । सत्य के चार भेद - नाम सत्य, स्थापना सत्य, आदेश सत्य और निरवशेष सत्य।
कूट, वृत्तवैताढ्य, वक्षस्कार पर्वत, वन, शिला आदि माणुस्सुत्तरस्स णं पव्वयस्स चउदिसिं चत्तारि कूडा पण्णत्ता तंजहा - रयणे, रयणुच्चए, सव्वरयणे, रयणसंचए । जंबूहीवे दीवे भरहेवएसु वासेसु तीयाए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो होत्था । जंबूहीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुस्समसुसमाए समाए जहण्णपए णं चत्तारि सागरोवम कोडाकोडीओ कालो होत्था । जंबूहीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org