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स्थान ४ उद्देशक ३
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बन जाता है, उसको इस प्रकार विचार उत्पन्न होता है कि - मैं मनुष्य लोक में अभी जाऊँ, एक मुहूर्त में जाऊं, ऐसा सोचते हुए विलम्ब कर देता है इतने समय में अल्प आयुष्य वाले मनुष्य यानी उसके पूर्वभव के स्वजन, परिवार आदि के मनुष्य कालेधर्म को प्राप्त हो जाते हैं । ४. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न हुआ देव दिव्य कामभोगों में मूछित, गृद्ध, आसक्त और तल्लीन बन जाता है । इसलिए उसको मनुष्य लोक की गन्ध प्रतिकूल और अमनोज्ञ मालूम होती है । क्योंकि मनुष्यलोक की गन्ध पहले और दूसरे आरे में चार सौ योजन और शेष आरों में पांच सौ योजन तक इस भूमि से ऊपर जाती है । देवलोक में तत्काल उत्पन्न हुआ देव मनुष्यलोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है किन्तु उपरोक्त चार कारणों से शीघ्र आने में समर्थ नहीं होता है ।
देवलोकों में तत्काल उत्पन्न हुआ देव मनुष्यलोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है तो इन चार कारणों से शीघ्र आने में समर्थ होता है । यथा - १. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न हुआ जो देव दिव्य कामभोगों में मूच्छित नहीं होता है यावत् उनमें तल्लीन नहीं होता है उसको इस प्रकार विचार उत्पन्न होता है कि मनुष्य भव में मेरे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर, गणावच्छेदक हैं । जिनके प्रभाव से मुझे इस प्रकार की यह दिव्य देव ऋद्धि, दिव्य देवधुति मिली है, प्राप्त हुई है, मेरे सन्मुख उपस्थित हुई है । इसलिये मैं मनुष्यलोक में जाऊँ और उन पूज्य आचार्य आदि को वन्दना नमस्कार करूं यावत् उनकी उपासना करूं । २. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न हुआ जो देव दिव्य कामभोगों में मूछित नहीं होता है यावत् उनमें तल्लीन नहीं बनता है उसको इस प्रकार विचार उत्पन्न होता है कि मनुष्य लोक में ज्ञानी और कठिन से कठिन क्रिया करने वाले तपस्वी आदि हैं । इसलिए मैं मनुष्यलोक में जाऊँ उन पूण्य ज्ञानी तपस्वियों को वन्दना नमस्कार करूं यावत् उनकी सेवा भक्ति करूं। ३. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न हुआ जो देव दिव्य कामभोगों में मूञ्छित नहीं होता है यावत् उनमें तल्लीन नहीं होता है। उसको इस प्रकार विचार होता है कि 'मनुष्यलोक में मेरे माता, पिता, भाई, बहिन, स्त्री, पुत्र, पुत्री और पुत्रवधू आदि हैं, इसलिए मैं मनुष्यलोक में जाऊँ और उनके सामने प्रकट होऊँ । वे मुझे मिली हुई, प्राप्त हुई, मुझे भोग्य अवस्था में मिली हुई मेरी ऐसी उत्कृष्ट इस दिव्य देवऋद्धि को, दिव्य देवधुति और शक्ति को देखें । ४. देवलोकों में तत्काल उत्पन्न हुआ जो देव दिव्य कामभोगों में मूच्छित नहीं होता है यावत् तल्लीन नहीं होता है, उसको इस प्रकार विचार होता है कि मनुष्यलोक में मेरा मित्र सखा यानी बचपन का दोस्त, सुहृत् यानी हितैषी सज्जन, सहायक अथवा संगत यानी परिचित व्यक्ति हैं, उनमें और मेरे में परस्पर संकेत यानी यह प्रतिज्ञा स्वीकृत हुई थी कि अपने में से जो पहले देवलोक से चव जाय उसको सम्बोधित करे अर्थात् उसको धर्म का प्रतिबोध देवें । प्रतिज्ञा के अनुसार वह देव मनुष्य लोक में आने में समर्थ होता है । इन उपरोक्त चार कारणों से देव मनुष्य लोक में आने में समर्थ होता है ।
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