Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
विवेचन-तत्काल उत्पन्न देवता चार कारणों से इच्छा करने पर भी मनुष्य लोक में नहीं आ सकता
१. तत्काल उत्पन्न देवता दिव्य काम भोगों में अत्यधिक मोहित और गृद्ध हो जाता है । इसलिए मनुष्य सम्बन्धी काम भोगों से उसका मोह छूट जाता है और वह उनकी चाह नहीं करता।
२. वह देवता दिव्य काम भोगों में इतना मोहित और गृद्ध हो जाता है कि उसका मनुष्य सम्बन्धी प्रेम देवता सम्बन्धी प्रेम में परिणत हो जाता है ।
३. वह तत्काल उत्पन्न देवता "मैं मनुष्य लोक में जाऊँ, अभी जाऊँ" ऐसा सोचते हुए विलम्ब कर देता है । क्योंकि वह देव कार्यों के पराधीन हो जाता है और मनुष्य सम्बन्धी कार्यों से स्वतन्त्र हो जाता है । इसी बीच उसके पूर्व भव के अल्प आयु वाले स्वजन, परिवार आदि के मनुष्य अपनी आयु पूरी कर देते हैं।
४. देवता को मनुष्य लोक की गन्ध प्रतिकूल और अत्यन्त अमनोज्ञ मालूम होती है । वह गन्ध इस भूमि से, पहले दूसरे आरे में चार सौ योजन और शेष आरों में पांच सौ योजन तक ऊपर जाती है ।
इससे विपरीत तत्काल उत्पन्न देवता मनुष्य लोक में आने की इच्छा करता हुआ चार बोलों से आने में समर्थ होता है। - १. वह देवता यह सोचता है कि मनुष्य भव में मेरे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर एवं गणावच्छेदक हैं । जिनके प्रभाव से यह दिव्य देव ऋद्धि, दिव्य देव द्युति और दिव्य देव शक्ति मुझे इस भव में प्राप्त हुई है । इसलिए मैं मनुष्य लोक में जाऊं और उन पूज्य आचार्यादि को वन्दना नमस्कार करूं, सत्कार सन्मान दूं एवं कल्याण तथा मंगल रूप यावत् उनकी उपासना करूं । . ___. नवीन उत्पन्न देवता यह सोचता है कि सिंह की गुफा में कायोत्सर्ग करना दुष्कर कार्य है । किन्तु पूर्व उपभुक्त, अनुरक्त तथा प्रार्थना करनेवाली वेश्या के मन्दिर में रहकर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना उससे भी अति दुष्कर कार्य है । स्थूलभद्र मुनि की तरह ऐसी कठिन से कठिन क्रिया करने वाले ज्ञानी, तपस्वी, मनुष्य-लोक में दिखाई पड़ते हैं । इसलिये मैं मनुष्य लोक में जाऊं और उन पूज्य मुनीश्वर को वन्दना नमस्कार करूं यावत् उनकी उपासना करूं।
., ३. वह देवता यह सोचता है कि मनुष्य भव में मेरे माता, पिता, भाई, बहिन, स्त्री, पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू आदि हैं । मैं वहां जाऊं और उनके सन्मुख प्रकट होऊं । वे मेरी इस दिव्य देव सम्बन्धी ऋद्धि, धुति और शक्ति को देखें। ____४. दो मित्रों या सम्बन्धियों ने मरने से पहले परस्पर प्रतिज्ञा की कि, हममें से जो देवलोक से पहले चवेगा । दूसरा उसकी सहायता करेगा और धर्म का प्रतिबोध देगा इस प्रकार की प्रतिज्ञा में बद्ध होकर स्वर्ग से चवकर मनुष्य भव में उत्पन्न हुए अपने साथी की सहायता करने के लिये उसे धर्म का बोध देने के लिये वह देवता मनुष्य लोक में आने में समर्थ होता है ।
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