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स्थान ४ उद्देशक २
३३५ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 कही गई हैं यथा - पाण्डुकम्बल शिला, अतिपाण्डुकम्बल शिला, रक्त कंबल शिला और अतिरिक्त कम्बल शिला । मेरु पर्वत की चूलिका ऊपर चार योजन चौड़ी कही गई है । इसी प्रकार धातकीखण्ड के पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध में तथा अर्द्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्द्ध और पश्चिमार्द्ध में काल से लेकर यावत् मंदरचूलिका तक सारा अधिकार कह देना चाहिए । यही बात गाथा में कही गई है । यथा -
जंबूहीवगआवस्सगं तु, कालओ चूलिया जाव ।
धायइसंडे पुक्खरवरे, य पुव्वावरे वासे ॥ १ ॥ कठिन शब्दार्थ - कालओ - काल से, जाव - यावत् चूलिया - चूलिका, पुव्वावरे - पूर्व और पश्चिम।
भावार्थ - सुषमसुषमा काल से लेकर यावत् मेरुपर्वत की चूलिका तक जम्बूद्वीप में जितनी वस्तुओं का कथन किया गया है, वह सास कथन धातकीखण्ड और अर्द्धपुष्करवरद्वीप के पूर्व और पश्चिम क्षेत्रों में कह देना चाहिए ।
विवेचन - मानुषोत्तर पर्वत पुष्कर द्वीप के मध्य भाग में चारों ओर कुंडलाकार अवस्थित है इसकी आकृति बैठे हुए सिंह के समान है। यह पुष्कर द्वीप को दो भागों में विभक्त करता है। इस पर्वत के बाहर मनुष्य नहीं है। मानुषोत्तर पर्वत पर चारों विदिशाओं में चार कूट इस प्रकार हैं - आग्नेय कोण में रत्न कूट, नैऋत्य कोण में रत्नोच्चय कूट, वायव्य कोण में सर्वरत्न कूट और ईशाण कोण में रत्न संचय कूट। रत्न कूट, सुवर्ण कुमार जाति के वेणुदेव का निवास स्थान है। रलोचय कूट वेलंब नाम के वायुकुमारेन्द्र का निवास स्थान है। सर्वरत्न कूट प्रभंजन नामक वायकमारेन्द्र का निवास स्थान है और रत्न संचय कूट वेणुदालिक नामक सुपर्ण कुमारेन्द्र का निवास स्थान है। इन चार कूटों के अलावा पूर्व दिशा में तीन, दक्षिण दिशा में तीन, पश्चिम दिशा में तीन और उत्तर दिशा में तीन कूट हैं। इस प्रकार मानुषोत्तर पर्वत पर कुल १६ कूट हैं।
जो वैताढ्य पर्वत गोलाकार हैं वे वृत वैताढ्य कहलाते हैं। प्रस्तुत सूत्र में शब्दापाती, विकटापाती गन्धाप्राती और माल्यवान् नामक चार वृत वैताढ्य पर्वत कहे हैं जिन परे महाऋद्धि संपन्न एक पल्योपम की स्थिति वाले क्रमशः चार देव रहते हैं यथा - स्वाति, प्रभास, अरुण और पद्म । . जो पर्वत गजदंताकार हैं उन्हें वक्खार (वक्षस्कार) पर्वत कहते हैं। शीता महानदी पूर्व महाविदेह क्षेत्र को दो भागों में विभक्त करती हुई समुद्र में प्रवेश करती है। शीता महानदी के उत्तर किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत हैं - चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट और एकशैल। उसके दक्षिण किनारे पर भी चार वक्षस्कार पर्वत हैं - त्रिकूट, वैश्रमण कूट, अञ्जन और मातञ्जन । शीतोदा महानदी पश्चिम महाविदेह क्षेत्र को दो भागों में विभक्त करती हुई समुद्र में प्रवेश करती है उसके दक्षिण किनारे पर चार वक्षस्कार पर्वत हैं .- अंकावती, पद्मावती, आशीविष, सुखावह। उसके उत्तर किनारे पर भी चार वक्षस्कार पर्वत
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