Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
एवं जाव थणियकुमाराणं, एवं पुडविकाइयाणं आउवणस्सइकाइयाणं वाणमंतराणं सव्वेसिं जहा असुरकुमाराणं॥१६७॥
"कठिन शब्दार्थ - उदिओदिए - उदितोदित, उदियथमिए - उदित अस्त, अत्यमिओदिए - अस्तोदित, अत्यमियत्थमिए - अस्तमितास्तमित, जुम्मा - युग्म, कडजुम्मे - कृतयुग्म, तेओए - त्र्योज, दावरजुम्मे - द्वापर युग्म, कलिओए - कल्योज, सूरा - शूर, खंतिसूरे - क्षान्तिशूर, जुद्धसूरे - युद्धशूर, वेसमणे - वैश्रमण, उच्चच्छंदे - उच्च अभिप्राय वाला। . भावार्थ - चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई पुरुष उदितोदित अर्थात् उच्च कुल, बल, ऋद्धि आदि पाकर फिर परम सुख को प्राप्त करने वाला, ऐसा उदितोदित चारों दिशाओं को जीतने वाला चक्रवर्ती भरत राजा हुआ था । यह मोक्ष में गया था । कोई एक पुरुष उदितअस्त अर्थात् जैसे सूर्य प्रातःकाल उदय होकर शाम को अस्त हो जाता है उसी प्रकार जो पहले उच्चकुल, बल, ऋद्धि आदि को प्राप्त करके फिर उस ऋद्धि आदि से रहित होकर दुर्गति में चला जाय, ऐसा चारों दिशाओं को जीतने वाला ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती हुआ था । वह चक्रवर्ती की ऋद्धि को भोग कर सातवीं नरक में गया था । कोई एक पुरुष अस्तउदित अर्थात् नीचकुल में उत्पन्न होकर फिर मोक्ष को प्राप्त हो । ऐसा अस्तोदित हरिकेशी बल नामक मुनि हुए थे । हरिकेशी का जन्म चण्डाल कुल में हुआ था । फिर दीक्षा लेकर वे मोक्ष में गये । कोई एक पुरुष अस्तमितास्तमित अर्थात् नीचकुल में जन्म लेकर फिर क्रूर कर्म करके नरक गति में चला जाय । ऐसा अस्तमितास्तमित काल शौकरिक कसाई हुआ था । वह नीचकुल में उत्पन्न हुआ था । वह ५०० भैंसा रोजाना मारता था । वह मर कर सातवीं नरक में गया था। __चार युग्म कहे गये हैं यथा - कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापर युग्म और कल्योज । नैरयिकों में कृतयुग्म त्र्योज द्वापर युग्म और कल्योज ये चारों युग्म कहे गये हैं । इसी तरह असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक सब भवनपति देवों में चार युग्म होते हैं । इसी प्रकार पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय, तिर्यञ्च, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक इन सभी दण्डकों में नैरयिकों के समान चारों युग्म होते हैं।
चार शूर कहे गये हैं यथा - क्षान्तिशूर - क्षमाशूर, तपःशूर, दानशूर और युद्धशूर । क्षमाशूर अरिहन्त होते हैं । तप:शूर अनगार-मुनि होते हैं । दानशूर वैश्रमण होता है और युद्धशूर वासुदेव होता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष उच्च यानी कुल, बल रूपादि गुणों से उन्नत और उच्च अभिप्राय वाला होता है । कोई एक पुरुष कुल आदि से उच्च होता है किन्तु अभिप्राय आदि से नीच होता है । कोई एक पुरुष कुल आदि से नीच होता है किन्तु अभिप्राय आदि से उच्च होता है और कोई एक पुरुष कुल आदि से नीच होता है और अभिप्राय आदि से भी नीच होता है। असुरकुमारों में चार लेश्याएं कही गई हैं यथा - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या। इसी तरह स्तनितकुमारों तक चार लेश्याएं होती हैं ।
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