Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक ३
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जिस प्रकार असुरकुमारों में चार लेश्याएं कही गयी है उसी प्रकार पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय तथा वाणव्यन्तर इन सब में चार-चार लेश्याएं होती हैं । . विवेचन - जिस राशि में से चार चार कम करते हुए शेष चार बच जाय उसे कृतयुग्म कहते हैं । तीन बचें तो उसे त्र्योज कहते हैं । दो बचें तो द्वापर युग्म और एक बचे तो कल्योज कहते हैं । गणित की परिभाषा में समराशि को युग्म और विषम राशि को ओज कहते हैं । __ उच्चकुल, बल, समृद्धि और निर्दोष कार्यों से उदित-अभ्युदय वाला और परम सुख के समूह के उदय से उदित-उदय पाया हुआ अतः उदितोदित जैसे भरत महाराजा का उदितोदितपना प्रसिद्ध है तथा प्रथम उदय प्राप्त और फिर अस्त हुए-सूर्य की तरह क्योंकि सर्व समृद्धि से भ्रष्ट होने से और दुर्गति में जाने से उदित अस्तमित-उदय को पाकर अस्त हुए ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की तरह वे उत्तमकुल में उत्पन्न हुए होने से और स्वभुजा के बल से प्राप्त साम्राज्य से प्रथम उदय को प्राप्त और पीछे और मरण के बाद अप्रतिष्ठान नाम के महा नरकावास संबंधी वेदना को प्राप्त होने से अस्त । ।
हीन कुल में उत्पत्ति, दुर्भाग्य और दारिद्रय आदि से पहले अस्त और बाद में समृद्धि, कीर्ति और सद्गति की प्राप्ति आदि से उदित-उदय प्राप्त हैं वे अस्तमितोदित हैं जैसे हरिकेश बल नाम के मुनि। पूर्व जन्म में बांधे हुए नीच गोत्र कर्म के वश हरिकेश नाम के चांडाल कुलपणे से दुर्भाग्यपन से और दरिद्रपन से प्रथम अस्त परन्तु पीछे से दीक्षित होने के कारण निश्चल चारित्र के गुणों से प्राप्त देवकृत सहायता से प्रसिद्धि प्राप्त होने और मोक्ष में जाने से उदित कहलाये।
सूर्य की तरह प्रथम अस्त क्योंकि नीचकुलपना और दुष्ट कर्म करने से कीर्ति, समृद्धि, लक्षण, . तेज आदि से जो रहित हैं और बाद में दुर्गति में जाने के कारण जो अस्त हुए वे अस्तमितास्तमित जैसे काल नाम का सौकरिक जो दुष्ट कुल में उत्पन्न हुआ और प्रतिदिन ५०० पाड़ों को मारने वाला होने के कारण प्रथम अस्त को प्राप्त और बाद में सातवीं नारकी में जाने के कारण अस्त कहा है । . शूर पुरुष के चार प्रकार हैं -
१. क्षमा शूर - वीरपुरुष - अरिहंत भगवान् होते हैं । जैसे भगवान् महावीर स्वामी । २. तप शूरअनगार होते हैं । जैसे धन्नाजी और दृढ प्रहारी अनगार । दृढ़ प्रहारी ने चोर अवस्था में दृढ प्रहार आदि से उपार्जित कर्मों का अन्त दीक्षा ले कर तप द्वारा छह माह में कर दिया । द्रव्य शत्रुओं की तरह भाव शत्रु अर्थात् कर्मों के लिये भी उसने अपने आप को दृढ़ प्रहारी सिद्ध कर दिया । ३. दान शूर - वैश्रमण-उत्तरदिशा का लोकपाल (कुबेर) हैं जो तीर्थंकर आदि के जन्म के समय में और पारणा आदि के समय में रत्नों की वृष्टि करते हैं । ४. युद्ध शूर - वासुदेव होते हैं । जैसे कृष्ण महाराज जिन्होंने ३६० युद्धों में जीत हासिल की थी।
देवता और नैरयिक जीवों में द्रव्य लेश्या उनके आयुष्य पर्यन्त अवस्थित रहती है उन द्रव्यों के
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