Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 उच्चारं - उच्चार-मल, पासवणं - प्रस्रवण-मूत्र, आवकहाए - यावज्जीवन के लिये, सीलब्बय गुणव्वय वेरमण पच्चक्खाणं पोसहोववासाई - पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत एवं अन्य त्याग पच्चक्खाण तथा पौषधोपवास को, भत्तपाणपडियाइक्खिए - आहार पानी का त्याग कर, कालमणवकंखमाणे - मरण की वाञ्छा न करते हुए ।
भावार्थ - चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं । यथा - पत्तों वाला, फूलों वाला, फलों वाला और छाया वाला । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - पत्तों वाले वृक्ष के समान, जो दूसरों का उपकार नहीं करते किन्तु अपना ही उपकार करते हैं । फूलों वाले वृक्ष के समान, जो दूसरों को सूत्र पढाने से उपकार करते हैं । फलों वाले वृक्ष के समान, जो दूसरों को सूत्र और अर्थ दोनों पढा कर उपकार करते हैं । छाया वाले वृक्ष के समान, जो दूसरों को अनुवर्तना (परावर्तन दोहराना) आदि करवा कर तथा कष्ट से रक्षा करके उनका उपकार करते हैं।
भार को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने वाले पुरुष के चार विश्राम स्थान कहे गये हैं । यथा - जहाँ पर वह भार को एक कन्धे से दूसरे कन्धे पर लेता है । वहाँ वह एक विश्राम स्थान कहा गया है । जहाँ पर.भार को रख कर टट्टी अथवा पेशाब करता है वह एक विश्राम स्थान कहा गया है । . जहाँ नागकुमार अथवा सुवर्णकुमार के देहरे (मन्दिर) में या अन्य स्थान पर रात्रि के लिए ठहरता है । वह एक विश्राम कहा गया है और जहाँ पर पहुंचना है वहां पहुंच कर यावज्जीवन के लिए विश्राम करना वह एक विश्राम कहा गया है । इसी तरह श्रमणोपासक श्रावक के चार विश्राम स्थान कहे गये हैं। यथा - जब पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत एवं अन्य त्याग पच्चक्खाण तथा पौषधोपवास को अङ्गीकार करता है तब वह एक विश्राम स्थान कहा गया है ।
जब अपश्चिम मारणान्तिक यानी मृत्यु के अवसर पर अन्त समय में संलेखना अङ्गीकार करके आहार पानी का त्याग कर पादपोपगमन यानी वृक्ष की तरह निश्चेष्ट रहते हुए मरण की वाञ्च्छा न करते हुए रहता है तब वह एक विश्राम स्थान कहा गया है ।
विवेचन - भार को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने वाले पुरुष के लिए चार विश्राम होते
१. भार को एक कंधे से दूसरे कंधे पर लेना एक विश्राम है। २. भार रख कर टट्टी पेशाब करना दूसरा विश्राम है।
३. नागकुमार सुवर्णकुमार आदि के देहरे मन्दिर में या अन्य स्थान पर रात्रि के लिए विश्राम करना तीसरा विश्राम है।
४. जहां पहुंचना है, वहां पहुंच कर सदा के लिए विश्राम करना चौथा विश्राम है । इसी प्रकार श्रावक के चार विश्राम कहे गये हैं -
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