Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 है । यथा - कर्दमोदक समान, जिससे कर्मों का गाढा लेप होता है, खञ्जनोदक समान, जिससे कर्मों का कुछ हल्का लेप होता है । बालुकोदक समान, जिससे मामूली हल्का लेप होता है और शैलोदक समान जिससे स्पर्शमात्र होता है । कर्दमोदक समान भाव में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो नैरयिकों में उत्पन्न होता है । खञ्जनोदक समान भाव में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होता है। बालुकोदक समान भाव में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो मनुष्यों में उत्पन्न होता है। शैलोदक समान भाव में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो देवों में उत्पन्न होता है । ___चार प्रकार के पक्षी कहे गये हैं । यथा - कोई एक पक्षी रुत सम्पन्न यानी मधुर शब्द वाला होता . है किन्तु रूपसम्पन्न यानी सुन्दर रूप वाला नहीं होता है जैसे कोयल । कोई एक पक्षी.रूपसम्पन्न होता है किन्तु रुत सम्पन्न यानी मधुर शब्द वाला नहीं होता है, जैसे अशिक्षित तोता । कोई एक पक्षी रुत सम्पन्न यानी मधुर शब्द वाला भी होता है और रूप सम्पन्न भी होता है, जैसे मोर । कोई एक पक्षी न तो. रुतसम्पन्न यानी मधुर शब्द वाला होता है और रूप सम्पन्न होता है जैसे कौआ । इसी तरह चार प्रकार . के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष मधुर शब्द वाला होता है किन्तु रूप सम्पन्न नहीं होता है। कोई एक पुरुष रूपं सम्पन्न होता है किन्तु मधुर शब्द वाला नहीं होता है । कोई एक पुरुष मधुर शब्द वाला भी होता है और रूप सम्पन्न भी होता है । कोई एक पुरुष न तो मधुर शब्द वाला होता है और न रूप सम्पन्न होता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष ऐसा विचार करता है कि मैं इसका हित करूं और वह उसका हित करता है । कोई एक पुरुष ऐसा विचार करता है कि मैं इसका हित करूं किन्तु वह उसका अहित करता है । कोई एक पुरुष ऐसा विचार करता है कि मैं - इसका अहित करूं, किन्तु वह उसका हित करता है । कोई एक पुरुष ऐसा विचार करता है कि मैं उसका अहित करूं और उसका अहित करता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष अपनी आत्मा का हित करता है किन्तु दूसरे का हित नहीं करता है । कोई एक पुरुष दूसरे का हित करता है किन्त अपनी आत्मा का हित नहीं करता है। कोई एक परुष अपनी आत्मा का भी हित करता है और दूसरे का भी हित करता है । कोई एक पुरुष न तो अपनी आत्मा का हित करता है और "न दूसरे का हित करता है। चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा - कोई एक पुरुष ऐसा विचार करता है कि मैं इसके हृदय में ऐसा विश्वास उत्पन्न करूंगा कि यह मेरा हित करता है ऐसा विचार कर वह उसके हृदय में विश्वास उत्पन्न करता है एवं उसका हित करता है । कोई एक पुरुष ऐसा विचार करता है कि मैं इसके हृदय में हित करने का विश्वास उत्पन्न करूं, किन्तु वह उसके हृदय में विश्वास उत्पन्न करता है एवं हित करता है । कोई एक पुरुष ऐसा विचार करता है कि मैं इसके हृदय में अविश्वास उत्पन्न करूँ एवं अहित करूं, ऐसा विचार करके वह अविश्वास उत्पन्न करता है एवं अहित करता है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष अपनी आत्मा का विश्वास एवं हित करता है
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