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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 आभासियदीवे, वेसाणियदीवे, णंगोलियदीवे । सेसं तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव सुद्धदंता॥१६१॥
कठिन शब्दार्थ - तिण्णिजोयणसयाई - तीन सौ योजन, ओगाहित्ता - जाने पर, अंतरदीवा - अंतर द्वीप । ___ भावार्थ - इस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण में चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत के चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में तीन सौ तीन सौ योजन जाने पर वहाँ तीन सौ योजन के लम्बे चौड़े चार अन्तर द्वीप कहे गये हैं यथा - एकोरुक द्वीप, आभाषिक द्वीप, वैषाणिक द्वीप, लाङ्गलिक द्वीप । उन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं यथा - एकोरुक, आभाषिक, वैषाणिक और लांगूलिक .। उन द्वीपों की चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में चार सौ चार सौ योजन जाने पर वहां चार सौ योजन के लम्बे चौड़े चार अन्तर द्वीप कहे गये हैं यथा - हयकर्ण द्वीप, गजकर्ण द्वीप, गोकर्ण द्वीप, शष्कुली कर्ण द्वीप। उन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं यथा - हयकर्ण, गजकर्ण, गोकर्ण और शष्कुली कर्ण। उन द्वीपों से चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में पांच सौ पांच सौ योजन जाने पर वहाँ पर पांच सौ पांच सौ योजन के लम्बे चौड़े चार अन्तर द्वीप कहे गये हैं यथा - आयंसमुखद्वीप, मेंढमुखद्वीप, अयोमुखद्वीप, गोमुखद्वीप । उन द्वीपों में उन्हीं नामों वाले चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं । उन द्वीपों की चारों विदिशाओं में लवणसमुद्र में छह सौ छह सौ योजन जाने पर वहाँ छह सौ छह सौ योजन के लम्बे चौड़े चार अन्तर द्वीप कहे गये हैं यथा - अश्वमुख द्वीप, हस्तिमुख द्वीप, सिंहमुख द्वीप, व्याघ्रमुख द्वीप। उन द्वीपों में उन्हीं नामों वाले मनुष्य रहते हैं । उन द्वीपों की चारों, विदिशाओं में लवण समुद्र में सात सौ सात सौ योजन जाने पर वहाँ सात सौ सात सौ योजन के लम्बे चौड़ें चार अन्तर द्वीप कहे गये हैं । यथा - अश्वकर्ण द्वीप, हस्तिकर्ण द्वीप, अकर्ण द्वीप, कर्ण प्रावरण द्वीप । उन द्वीपों में उन्हीं नामों वाले मनुष्य रहते हैं । उन द्वीपों की चारों विदिशाओं में लवण समुद्र में आठ सौ आठ सौ योजन जाने पर वहाँ आठ सौ आठ सौ योजन के लम्बे चौड़े चार अन्तर द्वीप कहे गये हैं । यथा - उल्कामुखद्वीप, मेघमुखद्वीप, विद्युत्मुख द्वीप, विद्युत्दंत द्वीप। उन द्वीपों में उन्हीं नामों वाले मनुष्य रहते हैं । उन द्वीपों की चारों विदिशाओं में लवण समुद्र में नव सौ नव सौ योजन जाने पर वहाँ नव सौ नव सौ योजन के लम्बे चौड़े चार अन्तर द्वीप कहे गये हैं । यथा - घनदंत द्वीप, लष्ठदन्त द्वीप, गूढदन्त द्वीप, शुद्धदन्त द्वीप। उन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं । यथा - घनदंत, लष्ठदन्त, गूढदन्त शुद्धदन्त ।
इस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधर पर्वत की चारों विदिशाओं में लवण समुद्र में तीन सौ तीन सौ योजन जाने पर वहाँ चार अन्तरद्वीप कहे गये हैं । यथा - एकोरूक द्वीप, आभाषिक द्वीप, वैषानिक द्वीप और लाङ्गलिक द्वीप । शेष यावत् शुद्धदन्त तक सारा अधिकार उसी प्रकार कह
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