Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
है यावत् स्वयंभूरमण पर्यंत द्वीपों के नाम के अनुसार ही समुद्रों के नाम हैं इस गणना से आठवां द्वीप नंदीश्वर है जिसका वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। यह नंदीश्वर द्वीप १,६३,८४,००००० (एक अरब वेसठ करोड़ और चौरासी लाख) योजन विष्कंभ वाला है। नन्दीश्वर द्वीप की जो रचना बतलाई गई है। उसके लिए टीकाकार ने लिखा है कि "तत्त्वन्तु बहुश्रुता विदन्तीति" इसका तत्त्व यानी रहस्य तो बहुश्रुत ज्ञानी पुरुष जानते हैं। मूल में अंजनक पर्वत के लिये "अच्छा "सण्हा""लहा" अदि सोलह विशेषण दिये हैं। जो वस्तु शाश्वत होती है, उसके लिये ये सोलह विशेषण दिये जाते हैं और अशाश्वत वस्तु के लिये "पासाईया" आदि चार विशेषण दिये जाते हैं। इन सोलह विशेषणों का अर्थ इस प्रकार है -
१. अच्छा - स्वच्छ-आकाश एवं स्फटिक के समान सब तरफ से स्वच्छ अर्थात् निर्मल।
२. सण्हा - श्लक्ष्ण यानी चिकने सूक्ष्म पुद्गलों से बने हुए होने के कारण चिकने वस्त्र के समान।
३. लण्हा - लक्ष्ण घोटे हुए वस्त्र जैसे चिकने।
४. घट्ठा - घृष्ट-पाषाण की पुतली जिस प्रकार खुरशाण से घिस कर एक सी और चिकनी कर दी जाती है वैसी घृष्ट।
५. मट्ठा - मृष्ट - कोमल खुरशाण से घिसे हुए चिकने। ६.णीरया - नीरज-रज अर्थात् धूलि रहित। ७.णिम्मला- निर्मल-मल रहित। ८.णिप्पंका - निष्पंक यानी गीले मल रहित। ९.णिक्कंकडच्छाया - निर्मल शोभा वाले। १०. सप्पभा - सप्रभा - प्रकाश सम्पन्न अथवा स्वयं आभा-चमक से सम्पन्न । ११. सम्मिरिया (सस्सिरिया) - समरिचि-मरिचि अर्थात् किरणों से युक्त तथा शोभा युक्त। ।
१२. सउज्जोया - सउद्योत-उद्योत अर्थात् प्रकाश सहित तथा समीपस्थ वस्तु को प्रकाशित करने वाले।
१३. पासाईया - प्रासादीय - मन को प्रसन्न करने वाले। १४. दरिसणिजा - दर्शनीय-देखने योग्य तथा देखते हुए आंखों को थकान मालूम नहीं होती है
ऐसे।
१५. अभिरुवा - अभिरूप -जितनी वक्त देखो उतनी वक्त नया नया रूप दिखाई देता है। १६, १६ पडिलवा - प्रतिरूप-प्रत्येक व्यक्ति के लिये रमणीय।
सिद्धायतन-'सिद्धानि नित्यानि च शाश्वतानि, तान्यायतानि' अर्थात् शाश्वत आयतन (निवास
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