________________
स्थान ४ उद्देशक २
३२५
___ चत्तारि वत्था पण्णत्ता तंजहा - किमिरागरत्ते, कद्दमरागरत्ते, खंजणरागरत्ते, हलिहरागरत्ते । एवामेव चउव्विहे लोभे पण्णत्ते तंजहा - किमिरागरत्तवत्थ समाणे, कद्दमरागरत्तवत्थ समाणे, खंजणरागरत्तवत्थ समाणे, हलिहरागरत्तवत्थ समाणे । किमिरागरत्तवत्थ समाणं लोभमणुप्पविढे जीवे कालं करेइ णेरइएसु उववज्जइ, कहमरागरत्तवत्थ समाणं लोभमणुप्पविढे जीवे कालं करेइ तिरिक्खजोणिएसु उववज्जइ, खंजणरागरत्तवत्थ समाणं लोभमणुप्पवितु जीवे कालं करेइ मणुस्सेसु उववज्जइ, हलिहरागरत्तवत्थ समाणं लोभमणुप्पविढे जीवे कालं करेइ देवेसु उववज्जइ॥१५५॥
कठिन शब्दार्थ - राइओ - रेखा, पव्वयराई - पर्वत की रेखा, पुढविराई - पृथ्वी की रेखा, वालुयराई - बालू की रेखा, उदगराई - पानी की रेखा, कोहं - क्रोध को, अणुप्पविटे - रहा हुआ, सेलथंभे - शैल स्तम्भ, अद्विथंभे - अस्थि स्तंभ, दारुथंभे - लकड़ी का स्तंभ, तिणिसलया थंभे - तिनिस लता स्तंभ, वंसीमूलकेयणए - बांस का मूल, मेंढविसाण केयणए - मेंढे का सींग, गोमुत्तिकेयणए - चलते हुए बैल के मूत्र की लकीर, अवलेहणिय केयणए - अवलेखनिका केतन, किमिरागरत्ते - कृमिरागरक्त, कहमरागरत्ते - कर्दम राग रक्त, खंजणरागरत्ते - खञ्जन राग रक्त-खञ्जन में रंगा हुआ, हलिहरागस्ते - हल्दी के रंग में रंगा हुआ। .. .भावार्थ - चार प्रकार की रेखा कही गई है यथा - पर्वत की रेखा, पृथ्वी की रेखा, बालू की रेखा और पानी की रेखा । इसी तरह चार प्रकार का क्रोध कहा गया है यथा - पर्वत की रेखा के समान, पृथ्वी की रेखा के समान, बालू की रेखा के समान और पानी की रेखा के समान । पर्वत की रेखा के समान क्रोध में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो नैरयिकों में उत्पन्न होता है। पृथ्वी की रेखा के समान क्रोध में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होता है। बालू में खींची हुई रेखा के समान क्रोध में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो मनुष्यों में उत्पन्न होता है। जल में खींची हुई रेखा के समान क्रोध में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो देवों में उत्पन्न होता है। . चार प्रकार के स्तम्भ कहे गये हैं यथा - शैलस्तम्भ यानी पत्थर का स्तम्भ, अस्थिस्तम्भ, लकड़ी का स्तम्भ, तिनिसलता स्तम्भ यानी तिनिस नामक वृक्ष की शाखा जो कि अत्यन्त कोमल होती है उसका.स्तम्भ । इसी प्रकार चार प्रकार का मान कहा गया है यथा - शैलस्तम्भ के समान, अस्थिस्तम्भ के समान, लकड़ी के स्तम्भ के समान, तिनिस लता के समान । शैलस्तम्भ के समान मान में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो नैरयिकों में उत्पन्न होता है । अस्थिस्तम्भ के समान मान में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो तिर्यञ्च योनि वाले जीवों में उत्पन्न होता है । लकड़ी के स्तम्भ के समान मान में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो मनुष्यों में उत्पन्न होता है। तिनिस वृक्ष की शाखा के समान मान में रहा हुआ जीव यदि काल करे तो देवों में उत्पन्न होता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org