Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक २
३०७ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 हाथी जाति आदि से भद्र और संकीर्ण मन यानी विचित्र चित्त वाला । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष जाति और आकार आदि से भद्र और भद्र मन वाला, कोई एक पुरुष जाति आदि से भद्र और मन का मंद, कोई एक पुरुष जाति आदि से भद्र और मन का मृग यानी डरपोक, कोई एक पुरुष जाति आदि से भद्र और संकीर्ण मन यानी विचित्र चित्त वाला । चार प्रकार के हाथी कहे गये हैं । यथा - कोई एक हाथी जाति आदि से मन्द और भद्र मन वाला कोई एक हाथी जाति आदि से मन्द और मन्द मन वाला । कोई एक हाथी जाति आदि से मन्द और मन का मृग यानी डरपोक, कोई एक हाथी जाति आदि से मन्द और संकीर्ण मन यानी विचित्र चित्त वाला । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष जाति आदि से मन्द और मन का भद्र, इसी प्रकार जैसी हाथी की चौभङ्गी कही गई है वैसी ही पुरुष की चौभङ्गी कह देनी चाहिए । चार प्रकार के हाथी कहे गये हैं । यथा - कोई एक हाथी जाति आदि से मृग यानी डरपोक और मन का भद्र, कोई एक हाथी जाति आदि से मृग यानी डरपोक और मन का मन्द, कोई एक हाथी जाति आदि से मृग यानी डरपोक और मन का भी मृग यानी डरपोक और कोई एक हाथी जाति आदि से मृग यानी डरपोक और संकीर्ण मन यानी विचित्र चित्त वाला । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष जाति आदि से मृग यानी डरपोक और मन का भद्र, इस तरह जिस प्रकार हाथी की चौभङ्गी कही गई है उसी प्रकार पुरुष की भी चौभङ्गी कह देनी चाहिए । चार प्रकार के हाथी कहे गये हैं । यथा - कोई एक हाथी जाति आदि से संकीर्ण और मन का भद्र, कोई एक हाथी जाति आदि से संकीर्ण और मन का मन्द, कोई एक हाथी जाति आदि से संकीर्ण और मन का मृग यानी डरपोक, कोई एक हाथी जाति आदि से संकीर्ण और मन का भी संकीर्ण यानी विचित्र चित्त वाला । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक पुरुष जाति आदि से संकीर्ण और मन का भद्र, इस तरह जिस प्रकार हाथी की चौभङ्गी कही गई है । उसी प्रकार पुरुष की भी चौभङ्गी कह देनी चाहिए यावत् कोई एक पुरुष जाति आदि से संकीर्ण होता है और मन का भी संकीर्ण यानी विचित्र चित्त वाला होता है ।
- अब चार प्रकार के हाथियों के लक्षण बताये जाते हैं - मधु गुटिका के समान गीली आंखों वाला, अनुक्रम से अपनी जाति के अनुसार बल और रूपादि से युक्त और दीर्घ पूंछ वाला, सामने उन्नत कुम्भस्थल वाला और धीर यानी क्षोभ को प्राप्त न होने वाला, जिसके सब अङ्ग लक्षण युक्त और प्रमाणोपेत हैं वह भद्र हाथी कहलाता है ॥१॥ ___फूली हुई और मोटी तथा विषम चमड़ी वाला, मोटे मस्तक वाला, जिसकी पूंछ का मूल भाग मोटा है, जिसके नख दांत और बाल स्थूल हैं, जिसकी आंखें सिंह के समान पीली हैं वह मन्द हाथी कहलाता है ॥२॥ .
तनुक यानी दुर्बल शरीर वाला, तनुकग्रीव यानी छोटी गर्दन वाला, तनुकत्वक् यानी पतली चमड़ी
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