Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 332
________________ ३१५ स्थान ४ उद्देशक २ .000000000000000000000000000000000000000000000000000 - गर्दा __चउबिहा गरहा पण्णत्ता तंजहा - उवसंपज्जामि एगा गरहा, वितिगिच्छामि एगा गरहा, जं किंचि मिच्छामि एगा गरहा, एवं वि पण्णत्ति एगा गरहा॥ १५१॥ कठिन शब्दार्थ - महापाडिवएहिं - महा प्रतिपदाओं में, सज्झायं - स्वाध्याय, आसाढ पाडिवएआषाढ मास की पूर्णिमा के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा, इंदमहपाडिवए - इन्द्रमह-आश्विन मास की पूर्णिमा के बाद आने वाली प्रतिपदा, कत्तिय पाडिवए- कार्तिक मास की पूर्णिमा के बाद आने वाली प्रतिपदा, सुगिम्ह पाडिवए - सुग्रीष्म-चैत्र मास की पूर्णिमा के बाद आने वाली प्रतिपदा, संझाहिं - संध्याओं में, पढमाए - प्रथम, पच्छिमाए - पश्चिम, मज्झण्हे - मध्याह्न, अद्धरए - अर्द्ध रात्रि, चाउक्कालं - चार प्रहर में, पुवण्हे - पूर्वाण्ह, अवरण्हे - अपराण्ह, पओसे - प्रदोष, पच्चूसे - प्रत्यूष, लोगठिई - लोक स्थिति, उदही- उदधि, पुढविपइट्ठिया - पृथ्वी प्रतिष्ठित, तहे - तथा, सोवत्थीसौवस्तिक-मांगलिक वचन बोलने वाला, पहाणे - प्रधान, आयंतकरे - आत्म अन्तकर, परंतकरे - पर-अंतकर-दूसरों का कल्याण करने वाला, आयंतमे - अपनी आत्मा पर क्रोध करने वाला, परंतमे - दूसरों पर क्रोध करने वाला, आयंदमे - आत्मदमन करने वाला, परंदमे - दूसरों का दमन करने वाला, गरहा - गर्दा, पण्णत्ति - प्रज्ञप्ति-फरमाना। भावार्थ - साधु साध्वियों को चार महा प्रतिपदाओं में स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है । यथा - आषाढ मास की पूर्णिमा के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा यानी श्रावण बदी एकम, इन्द्रमह यानी आश्विन मास की पूर्णिमा के बाद आने वाली प्रतिपदा यानी कार्तिक बदी एकम, कार्तिक मास की पूर्णिमा के बाद आने वाली प्रतिपदा यानी मिगसर वदी एकम और सुग्रीष्म यानी चैत्र मास की पूर्णिमा के बाद आने वाली प्रतिपदा वैशाख बदी एकम । साधु साध्वी को चार सन्ध्याओं में स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है । यथा - प्रथम सन्ध्या यानी सूर्योदय से दो घड़ी पहले, पश्चिम सन्ध्या यानी सूर्यास्त के बाद दो घड़ी पीछे तक, मध्याह्न यानी दिन में दुपहर के समय और आधी रात के समय । साधुः साध्वी को चार पहर में स्वाध्याय करना कल्पता है । यथा - पूर्वाण्ह यानी दिन के पहले पहर में, अपराण्ह यानी दिन के पीछले पहर में, प्रदोष यानी रात्रि के पहले पहर में और प्रत्यूष यानी रात्रि के अन्तिम पहर में । चार प्रकार की लोकस्थिति कही गई है । यथा - वायु यानी घनवात और तनुवात आकाश प्रतिष्ठित है, घनोदधि वायु प्रतिष्ठित है, पृथ्वी घनोदधि प्रतिष्ठित है और त्रस तथा स्थावर प्राणी पृथ्वी प्रतिष्ठित हैं । अर्थात् त्रस स्थावर प्राणी पृथ्वी पर रहे हुए हैं । पृथ्वी घनोदधि पर रही हुई है । घनोदधि घनवात तनुवात पर ठहरा हुआ है और घनवात तनुवात आकाश पर ठहरा हुआ है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - एक तथापुरुष यानी सेवक पुरुष, जो कि जिस प्रकार स्वामी आज्ञा देता है उसी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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