Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक २
३१७
है अतः अस्वाध्याय काल में आगमों का स्वाध्याय निषिद्ध है। इसलिये स्वाध्याय काल में ही स्वाध्याय करना चाहिये।
उत्तराध्ययन सूत्र के उनतीसवें अध्ययन में स्वाध्याय का फल बताते हुए कहा है -
"णाणावरणिजं कम्मं खवेइ" अर्थात् स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है। वाचना, पृच्छना आदि स्वाध्याय के भेदों से महान् निर्जरा का होना तथा असाता वेदनीय कर्म का बार-बार बन्ध न होना यावत् शीघ्र ही संसार सागर से पार पहुंचना आदि महाफल बतलाये गये हैं। परन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि समुचित वेला में ही स्वाध्याय करने से ये महान् फल प्राप्त होते हैं। जो समय स्वाध्याय का नहीं है उस समय स्वाध्याय करने से लाभ के बदले हानि हो सकती है क्योंकि भगवती सूत्र में कहा है कि देवताओं की भाषा अर्धमागधी है और शास्त्रों की भाषा भी यही है। आगमों के देववाणी में होने से तथा देवाधिष्ठित होने के कारण अस्वाध्याय को टालना चाहिए। क्योंकि उस समय स्वाध्याय करने से भक्ति के बदले अभक्ति हो जाती है तथा किसी के यहाँ मृत्यु होने पर स्वाध्याय करना व्यवहार में भी शोभा नहीं देता है क्योंकि लोग कह देते हैं कि ये बिचारे इतने दुःखी है इन को इनके प्रति कोई सहानुभूति नहीं है, इसलिए ये गीत गा रहे हैं।
नोट - यहाँ चार पूर्णिमा और चार प्रतिपदाओं का अस्वाध्याय काल बताया गया है किन्तु निशीथ सूत्र के उन्नीसवें उद्देशक में आश्विन के बदले भादवें की महाप्रतिपदा को अस्वाध्याय माना है। इसलिए भादवे की पूर्णिमा और आसोज वदी एकम इन दो को भी अस्वाध्याय मानना चाहिए। अस्वाध्याय चौतीस हैं - यथा दस औदारिक शरीर सम्बन्धी, दस आकाश सम्बन्धी, पांच पूर्णिमा, पांच प्रतिपदा
और चार संध्या (सुबह-शाम दोपहर और अर्धरात्रि) ये चौतीस.अस्वाध्याय टालकर जो स्वाध्याय किया जाता है उसमें किसी प्रकार की विघ्न बाधा नहीं आती है।
इनका विशेष विवरण ठाणाङ्ग चार, ठाणाङ्ग दस, व्यवहार भाष्य और हरिभद्र आवश्यक में है . उनका हिन्दी अनुवाद श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह बीकानेर के सातवें भाग १६८ वें बोल में है। जिज्ञासुओं को वहाँ देखना चाहिए।
- चार प्रकार से लोक की स्थिति कही है - .. १. आकाश पर घनवात, तनुवात (पतली वायु) रहा हुआ है। २. वायु पर घनोदधि रहा हुआ है ३. घनोदधि पर पृथ्वी रही हुई है और ४. पृथ्वी पर त्रस और स्थावर प्राणी रहे हुए हैं।
गुरु की साक्षी पूर्वक आत्मा की निन्दा गर्दा कहलाती है। प्रस्तुत सूत्र में चार प्रकार की गर्दा बतलायी गई है। .
पुरुष और स्त्रियों के भेद चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - अप्पणो णाममेगे अलमंथू भवइ णो
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