Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
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लड़की के साथ विवाह करने की प्रथा है, इत्यादि कथा करना। देश नेपथ्य कथा यानी देश के स्त्री पुरुषों के वेश भूषा आदि की कथा करना। राज कथा चार प्रकार की कही गई है । यथा- राजा की अतियान कथा यानी नगर में प्रवेश तथा उस समय की विभूति की कथा करना । राजा की निर्याण कथा यानी नगर से बाहर जाते समय राजा के सामन्त, सेना, आदि ऐश्वर्य की कथा करना । राजा के बल वाहन यानी हाथी घोड़े रथ आदि की कथा करना । राजा के धन धान्य आदि के भण्डार की कथा करना। -
धर्मकथा चार प्रकार की कही गई है । यथा - आक्षेपणी यानी श्रोता को मोह से हटा कर तत्त्व. की ओर आकर्षित करने वाली कथा, विक्षेपणी यानी सन्मार्ग के गुणों को बतला कर या कुमार्ग के दोषों को बता कर श्रोता को कुमार्ग से सन्मार्ग में लाने वाली कथा । संवेगनी यानी कामभोगों के कटु फल बता कर श्रोता में वैराग्य भाव उत्पन्न करने वाली कथा, निर्वेदनी यानी इस लोक और परलोक में पुण्य पाप के शुभाशुभ फल को बता कर संसार से उदासीनता उत्पन्न कराने वाली कथा । आक्षेपणी कथा चार प्रकार की कही गई है। यथा - आचार आक्षेपणी यानी साधु के आचार का अथवा आचाराङ्ग सूत्र के व्याख्यान द्वारा श्रोता में तत्त्वरुचि उत्पन्न करना । दोष की शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त द्वारा अथवा व्यवहार सूत्र के व्याख्यान द्वारा तत्त्व के प्रति आकर्षित करने वाली कथा व्यवहार आक्षेपणी कथा है । संशययुक्त श्रोताको मधुर वचनों से समझा कर अथवा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि प्रज्ञप्ति सूत्रों के व्याख्यान द्वारा श्रोता को तत्त्व के प्रति आकर्षित करने वाली कथा प्रज्ञप्ति आक्षेपणी कथा है । सात नयों के अनुसार सूक्ष्म जीवादि तत्त्वों के कथन द्वारा अथवा दृष्टिवाद सूत्र के व्याख्यान द्वारा श्रोता को तत्त्व की ओर आकर्षित करने वाली कथा दृष्टिवाद आक्षेपणी कथा है।
विक्षेपणी कथा चार प्रकार की कही गई है । यथा अपने सिद्धान्त का कथन करना, अपने सिद्धान्त का कथन करके पर सिद्धान्त का कथन करना यानी अपने सिद्धान्त के गुणों को प्रकाशित कर पर - सिद्धान्त के दोषों को बतलाने वाली पहली विक्षेपणी कथा है । पर सिद्धान्त का कथन करके स्वसिद्धान्त को स्थापित करे अर्थात् पर- सिद्धान्त का कथन करते हुए अपने सिद्धान्त को स्थापित करना, यह दूसरी विक्षेपणी कथा है। सम्यग्वाद अर्थात् पर- सिद्धान्त में घुणाक्षर न्याय से जितनी बातें जिनागम के सदृश हैं उनका कथन करे और सम्यग्वाद का कथन करके मिथ्यावाद यानी जिनागम के विपरीत वाद के दोषों का कथन करना अथवा आस्तिकवादी के अभिप्राय को बता कर नास्तिक वादी का अभिप्राय बतलाना तीसरी विक्षेपणी कथा है । मिथ्यावाद यानी जिनागम से विपरीत बातों के दोषों का कथन करके सम्यग्वाद की स्थापना करना अथवा नास्तिकवाद के दोषों को बता कर आस्तिकवाद की स्थापना करना । यह चौथी विक्षेपणी कथा है ।
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संवेगनी कथा चार प्रकार की कही गई है । यथा
यह सांसारिक धन वैभव असार एवं अस्थिर है, इस प्रकार संसार का स्वरूप बता कर वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथा इहलोग संवेगनी कथा है। देव
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