Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक १
२८५ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 उत्तर दिशा के इन्द्र बली के, भूयाणंदस्स - भूतानन्द के, विचित्तपक्खे - विचित्रपक्ष, सुप्पभकंतेसुप्रभकांत, अग्गिमाणवस्स - अग्निमाणवक के, महाणंदियावत्ते - महां नंदियावर्त्त, एगंतरिया - एकान्तरित-एक के बाद दूसरे देवलोकों के, दव्यप्पमाणे - द्रव्य प्रमाण, खित्तप्पमाणे - क्षेत्र प्रमाण, कालप्पमाणे- काल प्रमाण, भावप्पमाणे - भाव प्रमाण ।
- भावार्थ - असुरकुमारों के राजा एवं असुरकुमारों के इन्द्र दक्षिण दिशा में रहे हुए चमर के चार लोकपाल कहे गये हैं । यथा - सोम, यम, वरुण और वैश्रमण । इसी प्रकार उत्तरदिशा में रहे हुए बलीन्द्र के भी चार लोकपाल कहे गये हैं । यथा - सोम, यम, वैश्रमण और वरुण ।
धरणेन्द्र के चार लोकपाल हैं। यथा - कालपाल, कोलपाल, शैलपाल, शंखपाल । इसी प्रकार भूतानन्द के चार लोकपाल कहे गये हैं । यथा - कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल । वेणुदेव के चार लोकपाल हैं । यथा - चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष और विचित्रपक्ष । वेणुदार या वेणुफल के चार लोकपाल हैं । यथा-चित्र विचित्र, विचित्रपक्ष और चित्रपक्ष । हरिकान्त के चार लोकपाल हैं । यथा - प्रभ, सुप्रभ, प्रभकान्त और सुप्रभकान्त । हरिसह के चार लोकपाल हैं । यथा - प्रभ, सुप्रभ, सुप्रभकान्त और प्रभकान्त । अग्निशिख के चार लोकपाल हैं । यथा - तेज, तेजशिख, तेजकाल और तेजप्रभ । अग्निमाणवक के चार लोकपाल हैं । यथा - तेज, तेजशिख, वेजप्रभ और तेजकान्त । पुण्य के चार लोकपाल हैं । यथा- रुच, रुचीश, रुचकान्त और रुचप्रभ । इसी प्रकार वशिष्ठ के चार लोकपाल हैं । यथा - रुच, रुचांश, रुचप्रभ और रुचकान्त । जलकान्त के चार लोकपाल हैं । यथा - जल, जलरत, जलकान्त और जलप्रभ । जलप्रभ के चार लोकपाल हैं । यथा - जल, जलरत, जलप्रभ
और जलकान्त । अमितगति के चार लोकपाल हैं । यथा - त्वरितगति, क्षिप्रगति, सिंहगति और सिंहविक्रमगति । अमितवाहन के चार लोकपाल हैं । यथा - त्वरितगति, क्षिप्रगति, सिंहविक्रमगति और सिंहगति । वेलम्ब के चार लोकपाल हैं । यथा - काल, महाकाल, अञ्जन और अरिष्ट । प्रभञ्जन के चार लोकपाल हैं । यथा - काल, महाकाल, अरिष्ट और अञ्जन । घोष के चार लोकपाल हैं । यथा - आवर्त, व्यावर्त्त, नंदियावर्त महानंदियावर्त्त । महाघोष के चार लोकपाल हैं । यथा - आवर्त व्यावत महानंदियावर्त और नंदियावर्त्त । ये भवनपति देवों के बीस इन्द्रों के नाम कहे गये हैं।
.नवे आणत और दसवें प्राणत इन दोनों देवलोकों का प्राणत नामक एक ही इन्द्र होता है। इसी प्रकार ग्यारहवें आरण और बारहवें अच्युत इन दोनों देवलोकों का अच्युत नामक एक ही इन्द्र होता है। इस तरह वैमानिक देवों के बारह देवलोकों के दस इन्द्र होते हैं ।
___ पहले देवलोक के इन्द्र शक्र के चार लोकपाल हैं । यथा - सोम, यम, वरुण और वैश्रमण । दूसरे देवलोक के इन्द्र ईशान के चार लोकपाल हैं । यथा - सोम, यम, वैश्रमण और वरुण । इसी प्रकार एकान्तरित अर्थात् एक के बाद दूसरे देवलोकों के यावत् अच्युत नामक बारहवें देवलोक तक के
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