________________
२९८
श्री स्थानांग सूत्र
कठिन शब्दार्थ - गोरस विगईओ- गोरस-गाय के दूध से उत्पन्न होने वाली विगय, सप्पिं - सर्पि-घी, णवणीयं - नवनीत (मक्खन), सिणेह विगईओ - स्नेह विगय, तेल्लं - तेल, घयं - घी, वसा - चर्बी, महाविगईओ - महाविगय, महुं - मधु-शहद, मंसं - मांस, मज्जं - मदिरा, कूडागार - कूटागार-शिखर वाले घर, गुत्ते - गुप्त, अगुत्ते - अगुप्त, गुत्तदुवारा - गुप्त द्वार वाली, गुतिंदिया - गुप्तेन्द्रिय, ओगाहणा - अवगाहना, पण्णत्तीओ - प्रज्ञप्तियां, अंगबाहिरियाओ - अंग बाह्य, दीवसागरपण्णत्ति - द्वीप सागर प्रज्ञप्ति । .
भावार्थ - गोरस यानी गाय के दूध से उत्पन्न होने वाली चार विगय कही गई हैं यथा - दूध, . दही, सर्पि (घी) और नवनीत (मक्खन) । चार स्नेह विगय कही गई हैं यथा - तेल, घी, चर्बी और मक्खन चार महाविगय कही गई हैं यथा - मधु-शहद, मांस, मदिरा और मक्खन। ..
चार कूटागार यानी शिखर वाले घर कहे गये हैं यथा - कोई एक घर गुप्त यानी कोट आदि से घिरा हुआ अथवा भूमिघर और गुप्त द्वार वाला, कोई एक घर गुप्त किन्तु द्वार अगुप्त, कोई एक घर अगुप्त किन्तु द्वार-गुप्त, कोई एक घर भी अगुप्त और द्वार भी अगुप्त । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष गुप्त यानी वस्त्र आदि से ढका हुआ और भाव से गुप्त यानी लज्जावान् । कोई पुरुष वस्त्रादि से ढका हुआ किन्तु लज्जारहित । कोई पुरुष वस्त्रादि से रहित किन्तु लज्जावान् । कोई पुरुष वस्त्रादि से रहित और लज्जा से भी रहित । चार कूटागार शाला यानी शिखर वाली शालाएं कही गई हैं यथा - कोई एक शाला गुप्त यानी कोट आदि से घिरी हुई और गुप्त द्वार वाली, कोई एक गुप्त किन्तु अगुप्त द्वार वाली, कोई एक अगुप्त किन्तु गुप्त द्वार वाली, कोई एक अगुप्त
और अगुप्त द्वार वाली । इसी तरह चार प्रकार की स्त्रियाँ कही गई हैं यथा - कोई एक स्त्री गुप्त यानी परिवार से घिरी हुई अथवा घर के अन्दर ही रहने वाली अथवा वस्त्र आदि से ढकी हुई एवं गूढ स्वभाव वाली और गुप्तेन्द्रिय यानी अपनी इन्द्रियों को वश में रखने वाली, कोई एक स्त्री गुप्त किन्तु अगुप्तेन्द्रिय यानी इन्द्रियों को वश में न रखने वाली, कोई एक स्त्री अगुप्त किन्तु गुप्तेन्द्रिय । कोई एक स्त्री अगुप्त और अगुप्तेन्द्रिय। . चार प्रकार की अवगाहना कही गई हैं यथा - द्रव्य अवगाहना, क्षेत्र अवगाहना, काल अवगाहना और भाव अवगाहना। ___ चार पण्णत्तियाँ - प्रज्ञप्तियाँ अङ्ग बाह्य कही गई हैं यथा - चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति और द्वीपसागर प्रज्ञप्ति । ये चारों प्रज्ञप्तियाँ अङ्ग बाह्य और कालिक हैं ।
विवेचन - विगय अर्थात् विकृति, शरीर और मन के लिये प्रायः विकार का हेतु होने से दूध, दही, घी और मक्खन को विगय कहा है। स्नेह रूप विकृतियों को स्नेह विगय कहा है जो चार प्रकार की है - तेल, घी, चर्बी और मक्खन । महाविकार उत्पन्न करने वाली होने से चार महा विगय कहे हैंमधु-शहद, मांस, मदिरा और मक्खन।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org