Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
अमोहे है । उपरिम मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी ऊपर वाली त्रिक का बीच का प्रतर, जिसका नाम प्रतिभद्र है और उपरिम उपरिम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट यानी ऊपर वाली त्रिक का ऊपर का प्रतर, जिसका नाम यशोधर है। इस प्रकार ये नौ ग्रैवेयक एक के ऊपर एक घड़े की तरह रहे हुए हैं।
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जीवों ने तीन स्थानों से उपार्जन किये गये कर्म पुद्गलों को पाप कर्म रूप से ग्रहण किये हैं, ग्रहण करते हैं और ग्रहण करेंगे यथा स्त्रीवेद रूप से उपार्जित, पुरुषवेद रूप से उपार्जित और नपुंसकवेद रूप से उपार्जित कर्मपुद्गलों को गत काल में ग्रहण किया था, वर्तमान काल में ग्रहण करते हैं और भविष्यत् काल में ग्रहण करेंगे। इसी प्रकार कर्मपुद्गलों का संचय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदन और निर्जरा भूतकाल में की थी, वर्तमान में करते हैं और भविष्यत् काल में करेंगे।
त्रिप्रादेशिक यानी तीन प्रदेश वाले स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं । इसी प्रकार यावत् तीन गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गये हैं।
विवेचन - लोक रूप पुरुष के ग्रीवा (कंठ) स्थान में रहे हुए देव 'ग्रैवेयक' कहलाते हैं। इनके विमान ग्रैवेयक विमान कहलाते हैं। प्रस्तट अर्थात् पाथड़ा प्रतर- रचना विशेष वाले समूह। ग्रैवेयक विमानों के तीन त्रिक हैं। एक एक त्रिक में तीन-तीन प्रतर हैं। पहली त्रिक में भद्र, सुभद्र और सुजातये तीन प्रतर हैं। दूसरी त्रिक में सुमनस, सुदर्शन और प्रियदर्शन ये तीन प्रतर हैं। तीसरी त्रिक में अमोहे, प्रतिभद्र और यशोधर ये तीन प्रतर हैं। ये नौ ग्रैवेयक एक के ऊपर एक घड़े के आकार से स्थित हैं। सबसे नीचे की त्रिक में १११ विमान हैं, मध्यम त्रिक में १०७ विमान हैं और ऊपर की त्रिक में १०० विमान हैं। इस प्रकार ग्रैवेयक के ३१८ विमान हैं।
।। इति तीसरे ठाणे का चौथा उद्देशक समाप्त ॥
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।। इति तीसरा स्थान रूप तीसरा अध्ययन समाप्त ॥
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