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स्थान ४ उद्देशक १ 00000000
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४. शुक्लध्यान पूर्व विषयक श्रुत के आधार से मन की अत्यंत स्थिरता और योग का निरोध शुक्लध्यान कहलाता है। अथवा जो ध्यान आठ प्रकार के कर्ममल को दूर करता है अथवा जो शोक को नष्ट करता है वह ध्यान शुक्लध्यान है। परअवलम्बन बिना शुक्ल-निर्मल आत्म स्वरूप की तन्मयता पूर्वक चिन्तन करना शुक्ल ध्यान कहलाता है । अथवा जिस ध्यान में विषयों का सम्बन्ध होने पर भी वैराग्य बल से चित्त बाहरी विषयों की ओर नहीं जाता तथा शरीर का छेदन भेदन होने पर भी स्थिर हुआ चित्त ध्यान से लेश मात्र भी नहीं डिगता उसे शुक्ल ध्यान कहते हैं।
आर्त्तध्यान के चार भेद -
१. अमनोज्ञ वियोग चिन्ता - अमनोज्ञ शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श, विषय एवं उनकी साधनभूत वस्तुओं का संयोग होने पर उनके वियोग की चिन्ता करना तथा भविष्य में भी उनका संयोग न हो, ऐसी इच्छा रखना आर्त्तध्यान का प्रथम भेद है। इस आर्त्तध्यान का कारण द्वेष है।
२. रोग चिन्ता - शूल, सिर दर्द आदि रोग आतङ्क के होने पर उनकी चिकित्सा में व्यग्र प्राणी का उनके वियोग के लिए चिन्तन करना तथा रोगादि के अभाव में भविष्य के लिए रोगादि के संयोग न होने की चिन्ता करना आंर्त्तध्यान का दूसरा भेद है।
३. मनोज्ञ संयोग चिन्ता - पांचों इन्द्रियों के विषय एवं उनके साधन रूप, स्व, माता, पिता, भाई, स्वजन, स्त्री, पुत्र और धन तथा साता वेदना के वियोग में उनका वियोग न होने का अध्यवसाय करना तथा भविष्य में भी उनके संयोग की इच्छा करना आर्त्तध्यान का तीसरा भेद है। राग इसका मूल कारण है।
४. निदान (नियाणा) - देवेन्द्र, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव के रूप गुण और ऋद्धि को देख या सुन कर उनमें आसक्ति लाना और यह सोचना कि मैंने जो तप संयम आदि धर्म कार्य किये हैं। उनके फल स्वरूप मुझे भी उक्त गुण एवं ऋद्धिं प्राप्त हो। इस प्रकार अधम निदान की चिन्ता करना आर्त ध्यान का चौथा भेद है। इस आर्त्तध्यान का मूल कारण अज्ञान है। क्योंकि अज्ञानियों के सिवाय औरों को सांसारिक सुखों में आसक्ति नहीं होती। ज्ञानी पुरुषों के चित्त में तो सदा मोक्ष की लगन बनी रहती है।
राग द्वेष और मोह से युक्त प्राणी का यह चार प्रकार का आर्त्त ध्यान संसार को बढ़ाने वाला और सामान्यतः तिर्यञ्च गति में ले जाने वाला होता है ।
आर्त्तध्यान के चार लिङ्ग (चिह्न) - १. आक्रन्दन २. शोचन ३ परिवेदन ४. तेपनता ये चार आर्त्तध्यान के चिह्न हैं-1.
ऊँचे स्वर से रोना और चिल्लाना आक्रन्दन है। आँखों में आसू ला कर दीनभाव धारण करना शोचन है। बार-बार क्लिष्ट भाषण करना, विलाप करना परिदेवनता है। आंसू गिराना तेपनता है।
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