Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक १
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क्रोध न करना, उदय में आये हुए क्रोध को दबाना इस प्रकार क्रोध का त्याग क्षमा है। मान न करना, उदय में आये हुए मान को विफल करना, इस प्रकार मान का त्याग मार्दव है।
माया न करना - उदय में आई हुई माया को विफल करना, रोकना। इस प्रकार माया का त्यागआर्जव (सरलता) है।
लोभ न करना - उदय में आये हुए लोभ को विफल करना (रोकना)। इस प्रकार लोभ का त्याग-मुक्ति (शौच, निर्लोभता) है।
शुक्ल ध्यानी की चार भावनाएं - १. अनन्त वर्तितानुप्रेक्षा २. विपरिणामानुप्रेक्षा ३. अशुभानुप्रेक्षा ४. अपायानुप्रेक्षा।
१. अनन्त वर्तितानुप्रेक्षा - भव परम्परा की अनन्तता की भावना करना - जैसे यह जीव अनादि काल से संसार में चक्कर लगा रहा है। समुद्र की तरह इस संसार के पार पहुंचना, उसे दुष्कर हो रहा है
और वह नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव भवों में लगातार एक के बाद दूसरे में बिना विश्राम के परिभ्रमण कर रहा है। इस प्रकार की भावना अनन्तवर्तितानुप्रेक्षा है।
२. विपरिणामानुप्रेक्षा- वस्तुओं के विपरिणमन पर विचार करना। जैसे - सर्वस्थान अशाश्वत हैं। क्या यहाँ के और क्या देवलोक के देव एवं मनुष्य आदि की ऋद्धियाँ और सुख अस्थायी हैं। इस प्रकार की भावना विपरिणामानुप्रेक्षा है।
- ३.अशुभानुप्रेक्षा - संसार के अशुभ स्वरूप पर विचार करना। जैसे कि इस संसार को धिक्कार है जिसमें एक सुन्दर रूप वाला अभिमानी पुरुष मर कर अपने ही मृत शरीर में कृमि (कीड़े) रूप से उत्पन्न हो जाता है। इत्यादि रूप से भावना करना अशुभानुप्रेक्षा है।
४. अपायानुप्रेक्षा - आस्रवों से होने वाले, जीवों को दुःख देने वाले, विविध अपायों से चिन्तन करना, जैसे वश में नहीं किये हुए क्रोध और मान, बढ़ती हुई माया और लोभ ये चारों कषाय संसार के मूल को सींचने वाले हैं। अर्थात् संसार को बढ़ाने वाले हैं। इत्यादि रूप से आस्रव से होने वाले अपायों की चिन्तना अपायानुप्रेक्षा है।
... देव स्थिति और संवास चउविहां देवाणं ठिई पण्णत्ता तंजहा - देवे णामेगे, देवसिणाए णामेगे, देवपुरोहिए णामेगे, देवपज्जलणे णामेगे।
चउविहे संवासे पण्णत्ते तंजहा - देवे णामेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छेज्जा, देवे णामेगे छवीए सद्धिं संवासं गच्छेज्जा, छवी णामेगे देवीए सद्धिं संवासं गच्छेज्जा, छवीणामेगे छवीए सद्धिं संवासं गच्छेज्जा। ..
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