Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक १ 0000000000
जायणी, पुच्छणी, अणुण्णवणी, पुटुस्स वागरणी । चत्तारि भासाजाया पण्णत्ता तंजहा - सच्चमेगं भासज्जायं, बीयं मोसं, तइयं सच्चमोसं, चउत्थं असच्चमोसं । चत्तारि वत्था पण्णत्ता तंजहा - सुद्धे णामं एगे सुद्धे, सुद्धे णामं एगे असुद्धे, असुद्धे णामं एगे सुद्धे, असुद्धे णामं एगे असुद्धे । एवामेव चत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता तंजा - सुद्धे णामं एगे सुद्धे चउभंगो, एवं परिणय, रूवे, वत्था, सपडिवक्खा । चत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता तंजहा - सुद्धे णामं एगे सुद्धमणे चउभंगो, एवं संकप्पे जाव परक्कमे ॥ १२७॥
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कठिन शब्दार्थ - पडिमा प्रतिमा - अभिग्रह विशेष, पडिवण्णस्स - धारण करने वाले का, भासित्तए - बोलना, जायणी - याचनी, पुच्छणी- पृच्छनी, अणुण्णवणी - अनुज्ञापनी, पुटुस्स वागरणी - पूछे हुए प्रश्न का उत्तर देने वाली, सुद्धे - शुद्ध, असुद्ध - अशुद्ध, परिणयरूवे - परिणत रूप, सपडिवक्खा - सप्रतिपक्ष - दृष्टान्त भूत ।
भावार्थ - पडिमाधारी साधु को चार भाषाएं बोलना कल्पता है । यथा - याचनी यानी गृहस्थ के घर से आहार आदि मांगना, पृच्छनी यानी गुरु महाराज से सूत्रार्थ पूछना, अथवा गृहस्थ आदि से मार्ग · आदि के विषय में पूछना, अनुज्ञापनी यानी अवग्रह अर्थात् स्थान आदि की आज्ञा लेना। पूछे हुए प्रश्न का उत्तर देना। चार प्रकार की भाषा कही गई है । यथा- पहली सत्य भाषा, दूसरी मृषा भाषा तीसरी सत्यमृषा और चौथी असत्यामृषा यानी व्यवहार भाषा । चार प्रकार के वस्त्र कहे गये हैं । यथा - कोई एक वस्त्र शुद्ध तन्तुओं से बना हुआ और मल रहित शुद्ध । कोई एक वस्त्र शुद्ध तन्तुओं से बना हुआ किन्तु अशुद्ध यानी मलिन, कोई एक वस्त्र अशुद्ध तन्तुओं से बना हुआ किन्तु शुद्ध यानी मलरहित, कोई एक वस्त्र अशुद्ध तन्तुओं से बना हुआ और अशुद्ध यानी मल सहित अथवा काल की अपेक्षा से भी इस सूत्र की व्याख्या की जा सकती है। यथा - कोई वस्त्र पहले भी शुद्ध और पीछे भी शुद्ध, कोई वस्त्र पहले शुद्ध किन्तु पीछे अशुद्ध, कोई वस्त्र पहले अशुद्ध किन्तु पीछे शुद्ध, कोई वस्त्र पहले भी अशुद्ध और पीछे भी अशुद्ध । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा कोई पुरुष आदि से शुद्ध और भाव से भी शुद्ध, कोई पुरुष जाति आदि से शुद्ध और भाव से अशुद्ध, कोई पुरुष जाति आदि से अशुद्ध किन्तु भाव से शुद्ध, कोई पुरुष जाति आदि से भी अशुद्ध और भाव से भी अशुद्ध । इस प्रकार पुरुष की चौभङ्गी बनती है। इसी प्रकार शुद्ध परिणत और शुद्ध रूप इन दो की सप्रतिपक्ष यानी दृष्टान्त भूत वस्त्र और दान्तिक पुरुष की चार चौभङ्गी बन जाती है। चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा- कोई पुरुष जाति आदि से शुद्ध और शुद्ध मन वाला, जाति आदि से शुद्ध किन्तु अशुद्ध मन वाला, जाति आदि से अशुद्ध किन्तु शुद्ध मन वाला और जाति आदि से भी अशुद्ध और
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