Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
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है परन्तु आने में समर्थ नहीं होता है। वे चार कारण इस प्रकार हैं - १. नरंक में अत्यंत प्रबल रूप से उत्पन्न हुई वेदना के कारण २. नरकपालों परमाधार्मिक देवों द्वारा बारम्बार पीड़ित किये जाने के कारण ३. नरक में वेदने योग्य कर्मों का क्षय नहीं होने से और ४. नरकायु पूर्ण नहीं होने के कारण नैरयिक मनुष्य लोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है परन्तु आने में समर्थ नहीं होता है।
नैरयिक़ के प्रकरण में मूल पाठ में 'समुब्भूयं' शब्द आया है। टीकाकार ने इस शब्द की संस्कृत छाया चार तरह से की है और अर्थ भी चार किया हैं यथा - १. समुद्भूताम् - एक साथ उत्पन्न वेदना २. सम्मुखभूताम् - सामने आयी हुई वेदना ३. समहद्भूताम्- महानता से युक्त वेदना ४. समुहद्भूताम्प्रबलता से युक्त महान् वेदना को देखकर नैरयिक घबरा जाता है और वापिस मनुष्य लोक में आना चाहता है परन्तु आ नहीं सकता है। नैरयिकों के जन्म के समय तथा जीवन पर्यन्त और मरण काल ये तीनों का महा भयङ्कर वेदना से युक्त होते हैं।
ध्यान - विश्लेषण
चत्तारि झाणा पण्णत्ता तंजहा अट्टे झाणे, रोहे झाणे, धम्मे झाणे, सुक्के झाणे । अट्टे झाणे चउव्विहे पण्णत्ते तंजहा - अमणुण्णसंपओगसंपत्ते तस्स विप्पओगसइसमण्णागए यावि भवइ । मणुण्ण संपओगसंपत्ते तस्स अविप्पओगसइसमण्णागर यावि भवइ । आयंकसंपओगसंपत्ते तस्स विप्पओगसइसमण्णागए यावि भवइ। परिजुसियकामभोग संपओगसंपत्ते तस्स अविप्पओगसइसमण्णागए यावि भवइ । अट्टस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता तंजहा - कंदणया, सोबणया, तिप्पणया, परिदेवणया ।
रोहे झाणे चव्विहे पण्णत्ते तंजहा - हिंसाणुबंधि, मोसाणुबंधि, तेणाणुबंधि, सारक्खणाणुबंधि। रोहस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता तंजहा ओसण्णदोसे, बहुदोसे, अण्णाणदोसे, आमरणंतदोसे ।
धम्मे झाणे चउव्विहे चउप्पडोपयारे पण्णत्ते तंजहा - आणाविजए, अवायविजए, विवागविजए, संठाणविजए। धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता तंजहाआणारुई, णिसग्गरुई, सुत्तरुई, ओगाढरुई । धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता तंजहा - वायणा, पडिपुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा । धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुहाओं पण्णत्ताओ तंजहा - एगाणुप्पेहा, अणिच्चाणुप्पेहा, असरणाणुप्पेहा, संसाराणुप्पेहा ।
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