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स्थान ४ उद्देशक १
२५१ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 का अर्थ भी यही किया गया है कि वे उसी भव में मोक्ष गये हैं उन्हीं महापुरुषों का दृष्टान्त इन चार अन्तक्रियाओं में दिया गया है। यह तीसरी अन्तक्रिया है।
वृक्ष और मनुष्य चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता तंजहा - उण्णए णामेगे उण्णए, उण्णए णामेगे पणए, पणए णामेगे उण्णए, पणए णामेगे पणए । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - उण्णए णामेगे उण्णए तहेव जाव पणए णामेगे पणए । चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता तंजहा - उण्णए णामेगे उण्णय परिणए, उण्णए णामेगे पणयपरिणए, पणए णामेगे उण्णयपरिणए, पणए णामेगे पणयपरिणए, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - उण्णए णामेगे उण्णयपरिणए, चउभंगो । चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता तंजहा - उण्णए णामेगे उण्णयरूवे तहेव चउभंगो, एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - उण्णए णामेगे उण्णयरूवे। चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - उण्णए णामेगे उण्णयमणे, उण्णए णामेगे पणयमणे। एवं संकप्पे, पण्णे, दिट्ठी, सीलायारे, ववहारे, परक्कमे, एगे पुरिसजाएं पडिवक्खो णत्थि। चत्तारि रुक्खा पण्णत्ता तंजहा - उज्जू णामेगे उज्जू, उज्जू णामेगे वंके, चउभंगो। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - उज्जू णामेगे, एवं जहा उण्णयपणएहिं गमो तहा उज्जू वंकेहिं वि भाणियव्यो, जाव परक्कमे॥१२६॥
भावार्थ - चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं। यथा - कोई वृक्ष द्रव्य से उन्नत और भाव से भी उन्नत जैसे चन्दन आदि, कोई द्रव्य से उन्नत किन्तु जाति आदि से हीन जैसे नीम आदि, कोई द्रव्य से हीन किन्तु जाति आदि से उन्नत जैसे अशोक वृक्ष आदि, कोई द्रव्य से हीन और जाति आदि से भी हीन जैसे नीम बेल आदि। अथवा यह चौभङ्गी काल की अपेक्षा से भी जाननी चाहिए। यथा - पहले उन्नत और पीछे भी उन्नत, पहले उन्नत और पीछे हीन, पहले हीन और पीछे उन्नत, पहले हीन और पीछे भी हीन । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा - कोई जाति कुल आदि से उन्नत और भाव से लोकोत्तर ज्ञान आदि से उन्नत जैसे साधु श्रावक आदि। कोई जाति आदि से उन्नत और ज्ञान विहार आदि से हीन, जैसे शैलक राजर्षि तथा ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के समान। कोई जाति आदि से हीन किन्तु भाव से उन्नत जैसे मेतार्य मुनि तथा हरिकेशी मुनि के समान और कोई जाति आदि से हीन और भाव से भी हीन, यथा - उदायी राजा को मारने वाला वेषधारी साधु विनयरत्न भाट तथा काल शौकरिक कसाई। रस की अपेक्षा चार प्रकार के वृक्ष कहे गये हैं। यथा- कोई वृक्ष द्रव्य से उन्नत और रस से भी
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