Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 हिंसा आदि से निवृत्त होना। इसी प्रकार अध्युपपत्ति (अध्युपपादन) यानी इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति
और इन्द्रियों के विषयों का सेवन करना, इन दोनों से निवृत्त होने के भी जाणू, अजाणू और विचिकित्सा ये तीन तीन भेद हैं। तीन प्रकार का अन्त कहा गया है यथा - लोक का अन्त, वेदों का अन्त और जैन सिद्धान्तों का अन्त। तीन जिन कहे गये हैं यथा - अवधिज्ञानी जिन, मन:पर्यवज्ञानी जिन और केवलज्ञानी जिन। तीन केवली कहे गये हैं यथा - अवधि ज्ञानी केवली, मनःपर्यवज्ञानी केवली, केवलज्ञानी केवली। तीन अरिहन्त कहे गये हैं यथा - अवधिज्ञानी अरिहन्त, मनःपर्यवज्ञानी अरिहन्त और केवलज्ञानी अरिहन्त।
विवेचन - व्यावृत्ति (विरति) तीन प्रकार की कही गयी है - १. हिंसादि के हेतु स्वरूप और फल को जानने वाले की ज्ञानपूर्वक जो विरति होती है वह ज्ञाता के साथ अभेद होने से "जाणू" कही गयी है। २. अज्ञ - अजाण की ज्ञान के बिना जो विरति है वह "अजाणू" और ३. विचिकित्सा - संशय से जो विरति होती है वह विचिकित्सा व्यावृत्ति कहलाती है। व्यावृत्ति की तरह ही अध्युपपादनइन्द्रिय विषयों में आसक्ति और पर्यापदन - इन्द्रिय विषयों के सेवन के भी तीन-तीन भेद होते हैं।
रागद्वेष को जीतने वाले जिन कहलाते हैं। केवलज्ञानी तो सर्वथा राग द्वेष को जीतने वाले एवं पूर्ण निश्चय-प्रत्यक्ष ज्ञानशाली होने से साक्षात् (उपचार रहित) जिन हैं। अवधिज्ञानी और मनःपर्यवज्ञानी उपचार से यानी गौण रूप से जिन, केवली, अरिहन्त कहे गये हैं। मुख्य रूप से तो केवलज्ञानी ही जिन, केवली, और अरिहन्त हैं।
यहाँ लोकान्त शब्द का अर्थ यह किया गया है कि लौकिक शास्त्रों से किसी वस्तु का अन्त अर्थात् निर्णय करना, इस प्रकार वेदों के द्वारा निर्णय करना तथा जैन सिद्धान्तों के द्वारा. निर्णय करना क्रमशः लोकान्त, वेदान्त और समयान्त कहा गया है।
तओ लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ तंजहा - कण्हलेस्सा, णीललेस्सा, काउलेस्सा। तओ लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पण्णत्ताओ तंजहा - तेउलेस्सा, पम्हलेस्सा, सुक्कलेस्सा। एवं दुग्गइगामिणीओ सुगइगामिणीओ, संकिलिट्ठाओ असंकिलिट्ठाओ, अमणुण्णाओ मणुण्णाओ, अविसुद्धाओ विसुद्धाओ, अप्पसत्थाओ पसत्थाओ, सीयलुक्खाओ णिचुण्हाओ। तिविहे मरणे पण्णत्ते तंजहा - बालमरणे, पंडियमरणे, बालपंडियसरणे। बालमरणे तिविहे पण्णत्ते तंजहा - ठिय लेस्से, संकिलिट्ठलेस्से, . पज्जवजायलेस्से। पंडियमरणे तिविहे पण्णत्ते तंजहा - ठियलेस्से, असंकिलिट्ठलेस्से, पज्जवजायलेस्से। बालपंडियमरणे तिविहे पण्णत्ते तंजहा - ठियलेस्से, असंकिलिट्ठलेस्से, अपज्जवजायलेस्से॥१२०॥
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