Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ३ उद्देशक ४
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विवेचन - एक एक पृथ्वी चारों तरफ दिशा विदिशाओं में तीन वलयों से घिरी हुई है - १. घनोदधि वलय २. घनवात वलय और ३. तनुवात वलय। प्रथम घनोदधि वलय है उसके बाद क्रम से दो वलय घनवात और तनुवात है। घनोदधि अर्थात् घन हिम (बरफ) की शिला की तरह कठिन उदधि, घनवात कठिन वायु का समूह और तनुवात अर्थात् पतली वायु।
मनुष्य और तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव ही नैरयिक हो सकते हैं अन्य गति वाले जीव नहीं। जो जीव नैरयिक रूप से उत्पन्न होते हैं उनमें कुछ ऋजुगति से उत्पन्न होते हैं और कुछ विग्रह (वक्र) गति से। जो ऋजु गति से उत्पन्न होते हैं वे एक समय में ही जन्म स्थान में पहुंच जाते हैं किन्तु जो विग्रह गति से उत्पन्न होते हैं उन्हें उत्कृष्ट तीन मोड-घुमाव करने पड़ते हैं। एक मोड़ हो तो दो समय लगते हैं दो मोड़ हो तो तीन समय लगते हैं और तीन मोड़ हो तो चार समय लगते हैं। त्रस जीव यदि त्रस नाडी में उत्पन्न होता है तो दो मोड़ (विग्रह होते हैं) जिनमें तीन समय लगते हैं जो इस प्रकार समझना चाहिएजीव अग्निकोण से नैऋत कोण में एक समय में जाता है दूसरे समय में समश्रेणी से नीचे जाता है और इसके बाद तीसरे समय में समश्रेणी से वायव्य कोण में जाता है। त्रसकाय की उत्पत्ति में त्रस जीवों की इस प्रकार उत्कृष्ट से विग्रह-वक्रगति है। एकेन्द्रिय जीव एकेन्द्रियपने उत्पन्न हो तो पांच समय में उत्पन्न होता है क्योंकि त्रसनाडी से बाहर रहे हुए जीव त्रसनाडी से बाहर भी उत्पन्न होते हैं। कहा है - . विदिसाउ दिसं पढमे, बीए पइसरइ लोयनाडीए।
तइए उप्पिं धावइ, चउत्थए नीइ बाहिं तु॥ "पंचमए विदिसीए गंतु उष्पज्ञए उ एगिंदि"त्ति -
अर्थ - प्रथम समय में जीव विदिशा से दिशा में जाता है। दूसरे समय त्रस नाडी में आता है, तीसरे समय ऊंचा जाता है चौथे समय त्रस नाडी से बाहर की दिशा में समश्रेणी से जाता है और पांचवें समय में विदिशा में जाकर एकेन्द्रिय रूप से उत्पन्न होता है। यह संभव मात्र है परन्तु होते चार समय ही है क्योंकि भगवती सूत्र में इस प्रकार पाठ आया है - ____ "अपजत्तगहुमपुढविकाइए णं भंते ! अहेलोग खेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए समोहणित्ता जे भविए उड्डलोयखेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपजत्तसहुमपुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कइ समइएणं विग्गहेणं उववजेजा ? गोयमा ! तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेण उववजेजा।"
- - हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोक की क्षेत्र नाड़ी से बाहर के क्षेत्र में मारणांतिक समुद्घात से युक्त होकर ऊर्ध्वलोक में क्षेत्र (त्रस) नाड़ी से बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय रूप से उत्पन्न होने योग्य है वह जीव हे भगवन् ! कितने समय के विग्रह से उत्पन्न होता है ?
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