Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ३ उद्देशक ४
२२५ .
साथ मैथुन सेवन की इच्छा करने वाला, प्रमाद पाराञ्चिक यानी स्त्यानगृद्धि निद्रा लेने वाला, बहुत प्रमादी और परस्पर मैथुन सेवन करने वाला पाराञ्चिक।
तीन अनवस्थाप्य कहे गये हैं। यथा - साधर्मिक साधुओं के उपकरण आदि या शिष्य आदि की चोरी करने वाला, अन्यधार्मिक अर्थात् परमतावलम्बियों के उपकरण आदि की चोरी करने वाला और लकड़ी आदि या चपेटा आदि से ताड़ना करने वाला।
विवेचन - अनुद्घातिम-लघु मास आदि तप से जिस दोष की शुद्धि न हो सके वह अनुद्घातिम कहलाता है। उस दोष को सेवन करने वाला भी अनुद्घातिम कहलाता है।
पाराञ्चिक - जिस दोष की शुद्धि तपस्या द्वारा करके फिर नई दीक्षा दी जाय वह पाराञ्चिक नामक दसवां प्रायश्चित्त है। ___अनवस्थाप्य नववा प्रायश्चित्त है। इसमें दोषों का सेवन करके उनकी शुद्धि के लिए तप विशेष न करने वाले को नई दीक्षा नहीं दी जा सकती हैं। ..
तओ णो कप्पंति पव्वावित्तए तंजहा - पंडए, वाइए, कीवे। एवं मुंडावित्तए, सिक्खावित्तए, उवट्ठावित्तए, संभुंजित्तए, संवासित्तए॥१०९॥
.. कठिन शब्दार्थ - पव्वावित्तए - प्रव्रज्या-दीक्षा देना, पंडए - पंडक-जन्म नपुंसक, वाइए - वातिक-वायु से जिसका शरीर बहुत स्थूल हो गया है (रोगी), कीवे - क्लीव-वेद जनित बाधा को रोकने में असमर्थ, मुंडावित्तए - मुण्डित करना, सिक्खावित्तए - शिक्षा देना, उवट्ठावित्तए - बड़ी दीक्षा देना, संभंजित्तए - सम्भोग करना, संवासित्तए - साथ रहना। . भावार्थ - तीन पुरुषों को प्रव्रज्या - दीक्षा देना नहीं कल्पता है। यथा जन्म-नपुंसक, वायु से जिसका शरीर बहुत स्थूल हो गया है अथवा रोगी और क्लीव यानी वेदजनित बाधा को रोकने में असमर्थ। इसी प्रकार उपरोक्त तीन को मुण्डित करना, समाचारी आदि की शिक्षा देना, महाव्रतों की स्थापना करना यानी बड़ी दीक्षा देना, उपधि आहार आदि का सम्भोग करना और साथ रहना नहीं कल्पता है। .. तओ अवायणिजा पण्णत्ता तंजहा - अविणीए विगइपडिबद्धे, अविओसियपाहुडे। तओ कप्पंति वाइत्तए तंजहा - विणीए अविगइपडिबद्धे विउसियपाहुडे। तओ दुसण्णप्पा पण्णत्ता तंजहा - ढे, मूढे वुग्गाहिए। तओ सुसण्णप्पा पण्णत्ता तंजहा - अनुढे, अमूढे, अवुग्गाहिए॥११०॥
कठिन शब्दार्थ - अवायणिज्जा - अवाचनीय-वाचना के अयोग्य, विगइ पडिबद्धे - विगय प्रतिबद्ध-विगयों में गृद्धिभाव रखने वाला, अविओसिय पाहुडे - अव्यवसितप्राभृत-क्रोध को उपशांत
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