Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ३ उद्देशक ३
भगवन् ! श्रवण का क्या फल होता है ? भगवान् फरमाते हैं कि श्रवण से ज्ञान प्राप्त होता है। गौतम स्वामी फिर पूछते हैं कि हे भगवन् ! ज्ञान का क्या फल होता है ? भगवान् फरमाते हैं कि ज्ञान से विज्ञान यानी पदार्थों की हेय उपादेयता का निश्चय होता है। इस प्रकार इस अभिलापक के अनुसार यह गाथा जाननी चाहिए -
साधु के गुणों से युक्त तथारूप के साधु की पर्युपासना के क्रमशः उत्तरोत्तर ये फल हैं। यथा - शास्त्रश्रवण, ज्ञान, विज्ञान, प्रत्याख्यान यानी हेय पदार्थों का त्याग, संयम यानी प्राणातिपात आदि से निवृत्त होना, अनास्रव यानी नवीन कर्मों का बंध न होना, तप, व्यवदान यानी पूर्वकृत कर्मों का क्षय, अक्रिया यानी योगों का निरोध और निर्वाण।
इसी विषय में गौतम स्वामी पूछते हैं कि हे भगवन् ! अक्रिया यानी योग निरोध का क्या फल होता है ? भगवान् फरमाते हैं कि योगनिरोध का फल निर्वाण है। गौतम स्वामी फिर पूछते हैं कि भगवन् ! निर्वाण का क्या फल होता है ? भगवान् गौतमादिक शिष्यपरिवार को सम्बोधित करके फरमाते हैं कि हे आयुष्मन श्रमणो ! सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके सब कार्यों की सिद्धि रूप मोक्ष की प्राप्ति होना, यही अन्तिम फल कहा गया है।
विवेचन - साधु के गुणों से युक्त साधु के दर्शन करने का क्या फल होता है ? इसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया है कि शास्त्र श्रवण का फल होता है इसका तात्पर्य यह है कि दर्शन करने वाले व्यक्ति का जीवन धार्मिक बने ऐसा कुछ उसको धर्मोपदेश देना चाहिए। यदि इस प्रकार का अवसर न हो तो कम से कम उसे 'चत्तारि मंगलं' का पाठ तो कह ही देना चाहिए क्योंकि यह आवश्यक सूत्र का पाठ है, इसमें बतलाया गया है कि अरिहन्त, सिद्ध, साधु और केवली प्ररूपित धर्म ये चार इस लोक में मंगल, उत्तम और शरण रूप हैं इसीलिए 'चत्तारि मंगलं' का पाठ कह कर संक्षेप में उसको हिन्दी में यह कह देना चाहिए -
"ये चार मंगल चार उत्तम चार शरण है और न दूजा कोय। - जे भवी प्राणी आदरे तो अक्षय अमर पद होय॥"
कितनेक संत महात्मा ऐसा कह देते हैं कि "बार-बार मांगलिक क्या कहना साधु के दर्शन ही मांगलिक है" किन्तु ऐसा कहना इस आगम पाठ के अनुकूल नहीं है क्योंकि दर्शनार्थी को शास्त्र श्रवण का फल मिलना चाहिए तथा मांगलिक कहने वाले के तो बार-बार स्वाध्याय हो जाता है अतः दर्शनार्थी जब भी मांगलिक मांगे उसे मांगलिक सुनाना इस शास्त्र पाठ के अनुकूल है। मांगलिक सुनाने के लिये समय निश्चित करना भी. आगमानुकूल नहीं है। 'इतने समय ही मांगलिक सुनाया जाएगा' ऐसा कहना अनुचित है।
॥तीसरे स्थान का तीसरा उद्देशक समाप्त ।
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