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श्री स्थानांग सूत्र - 000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - तीन प्रकार की कथा कही गई है। यथा - धन उपार्जन सम्बन्धी कथा सो अर्थकथा, दया दान आदि की कथा सो धर्म कथा और काम शास्त्र की कथा सो काम कथा। तीन प्रकार का विनिश्चय कहा गया है। यथा - धन के स्वरूप का वर्णन करना सो अर्थ विनिश्चय, धर्म ही मोक्ष को देने वाला है इत्यादि वर्णन करना सो धर्म विनिश्चय और काम भोगों के दुःखदायी फल का. वर्णन करना सो काम विनिश्चय। - विवेचन - कथा तीन प्रकार की कही है - १. अर्थ कथा २. धर्म कथा ३. काम कथा।
१. अर्थ कथा - अर्थ का स्वरूप एवं उपार्जन के उपायों को बतलाने वाली वाक्य पद्धति अर्थ कथा है । जैसे - कामन्दकादि शास्त्र। ..
२. धर्म कथा - धर्म का स्वरूप एवं उपायों को बतलाने वाली वाक्य पद्धति धर्मकथा है। जैसेउत्तराध्ययन सूत्र आदि।
३. काम कथा - काम एवं उसके उपायों का वर्णन करने वाली वाक्य पद्धति काम कथा है जैसे- वात्सायन काम सूत्र आदि। ..
तहास्ववंणं भंते ! समणं वा माहणं वा पजुवासमाणस्स किंफला पज्जुवासणया? सवणफला। से णं भंते सवणे किंफले ? णाणफले। से णं भंते णाणे किंफले ? विण्णाणफले। एवमेएणं अभिलावणं इमा गाहा अणुगंतव्वा - .
सवणे णाणे य विण्णाणे, पच्चक्खाणे य संजमे।
अणहए तवें चेव, वोदाणे अकिरिय णिव्वाणे॥ जाव से णं भंते अकिरिया किं फला ? णिव्वाणफला। से णं भंते णिव्वाणे किंफले ? सिद्धिगइगमणपज्जवसाणफले पण्णत्ते समणाउसो!॥१०॥
॥तइयट्ठाणस्स तइयउद्देसो समत्तो ॥
कठिन शब्दार्थ - पजुवासमाणस्स - पर्युपासना-सेवा का, किंफला - क्या फल, सवणफलाश्रवणफल-शास्त्र श्रवण का फल, विण्णाणफले - विज्ञान फल, अणुगंतव्वा ,- जाननी चाहिये, अणण्हए- अनास्रव-नवीन कर्मों का बंध न होना, वोदाणे - व्यवदान-पूर्वकृत कर्मों का क्षय, अकिरियअक्रिया-योगों का निरोध, णिव्वाणे - निर्वाण, सिद्धिगइगमण पजवसाण फले - सब कार्यों की सिद्धि रूप मोक्ष की प्राप्ति होना, यह अंतिम फल, पण्णत्ते - कहा गया है।
भावार्थ - गौतम स्वामी पूछते हैं कि हे भगवन् ! तथारूप यानी साधु के गुणों से युक्त श्रमण माहन यानी साधु महात्माओं की पर्युपासना यानी सेवा करने वाले पुरुष को उस सेवा का क्या फल होता है ? भगवान् फरमाते हैं कि शास्त्रश्रवण का फल होता है। गौतम स्वामी फिर पूछते हैं कि हे
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