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जाव वाससयसहस्से पुव्वंगे पुव्वे जाव ओसप्पिणी । तिविहे पोग्गल परियट्टे पण्णत्ते तंजा - ती पडुप्पण्णे अणागए। तिविहे वयणे पण्णत्ते तंजहा - एगवयणे दुवयणे बहुवयणे, अहवा तिविहे वयणे पण्णत्ते तंजहा - इत्थिवयणे पुंवणे णपुंसगवयणे अहवा तिविहे वयणे पण्णत्ते तंजहा-तीयवयणे पडुप्पण्णवयणे अणागयवयणे ।१०२ । कठिन शब्दार्थ - तीए - अतीत, पडुप्पण्णे - प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) अणागए - अनागतं (भविष्य) भावार्थ - तीन प्रकार का काल कहा गया है। यथा अतीत काल, वर्तमान काल और अनागत काल यानी भविष्यत् काल । तीन प्रकार का समय कहा गया है। यथा अतीत, वर्तमान और अनागत। इसी प्रकार आवलिका, श्वासोच्छ्वास, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्रि यावत् लाख वर्ष, पूर्वाङ्ग पूर्व यावत् अवसर्पिणी तक सब के अतीत वर्तमान और अनागत ये तीन तीन भेद हैं। तीन प्रकार का पुद्गल परिवर्तन कहा गया है । यथा अतीत, वर्तमान और अनागत। तीन प्रकार के वचन कहे गये हैं । यथा - एकवचन, द्विवचन बहुवचन । अथवा तीन प्रकार का वचन कहा गया है। यथा स्त्री वचन, पुरुष वचन और नपुंसक वचन । अथवा तीन प्रकार का वचन कहा गया है। यथा - अतीत वचन, वर्तमान वचन, अनागत वचन ।
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स्थान ३ उद्देशक ४
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विवेचन काल तीन प्रकार का कहा है १. अतीत - भूतकाल २. प्रत्युत्पन्न - अभी जो उत्पन्न हुआ है वह प्रत्युत्पन्न - वर्तमान । ३. अनागत- जो नहीं आगत ( आया हुआ) वह अनागत, वर्तमान पन को नहीं प्राप्त अर्थात् भविष्य ऐसा अर्थ होता है ।
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पोग्गलपरियट्टे - पुद्गल यानी आहारक को छोड़ कर शेष रूपी द्रव्यों के औदारिक आदि (सात वर्गणा) प्रकार से ग्रहण करने से एक जीव की अपेक्षा परिवर्त्तनं समस्त रूप से स्पर्श करना पुद्गल परिवर्त हैं। यह जितने काल से होता है वह काल पुद्गल परावर्त्त कहलाता है जो अनंत उत्सर्पिणी अवसर्पिणी रूप है। पुद्गल परावर्त्त का वर्णन भगवती सूत्र में इस प्रकार किया है
कवि णं भंते ! पोग्गल परियट्टे पण्णत्ते ? गोयमा ! सत्तविहे पण्णत्ते, तंजहा- ओरालिय पोग्गल परियट्टे वेडव्विय पोग्गल परिबट्टे एवं तेयाकम्मामणवइ आणा पाणू पोग्गल परियट्टे ।.
प्रश्न - हे भगवन् ! पुद्गल परावर्त्त कितने प्रकार का कहा है ?
. उत्तर - हे गौतम! सात प्रकार का पुद्गल परावर्त कहा है यथा - १. औदारिक पुद्गल परावर्त्त २. वैक्रिय पुद्गल परावर्त्त ३. तैजस ४. कर्म (कार्मण) ५. मन ६. वचन ( भाषा) ७. आनप्राण श्वासोच्छ्वास पुद्गल परावर्त्त ।
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'से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-ओरालिय पोग्गल परियट्टे ? गोयमा ! जे णं जीवेणं ओरालिय सरीरे वहमाणेणं ओरालिय सरीर पाउग्गाई दव्वाई ओरालियसरीरत्ताए गहियाई जाव णिसट्टाइं भवंति, से तेणऽट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ - ओरालिय पोग्गल परियट्टे ओ० २ ।'
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