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स्थान ३ उद्देशक ४
२१९ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 विशुद्धि अथवा पिंड और चारित्र आदि की निर्दोषता को उद्गमादि की विशुद्धि अथवा उद्गमादि दोषों की जो विशुद्धि है वह उद्गमादि विशुद्धि कहलाती है। ... आराधना - अतिचार न लगाते हुए शुद्ध आचार का पालन करना आराधना है। आराधना के तीन भेद हैं - १. ज्ञानाराधना २. दर्शनाराधना ३. चारित्राराधना। ____ ज्ञानाराधना - ज्ञान के काल, विनय, बहुमान आदि आठ आचारों का निर्दोष रीति से पालन करना ज्ञानाराधना है।
दर्शनाराधना - शंका, कांक्षा आदि समकित के अतिचारों को न लगाते हुए निःशंकित आदि समकित के आचारों का शुद्धता पूर्वक पालन करना दर्शनाराधना है।
चारित्राराधना - सामायिक आदि चारित्र में अतिचार नहीं लगाते हुए निर्मलता पूर्वक उसका पालन करना चारित्राराधना है । जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट से प्रत्येक के तीन तीन भेद होते हैं। .. . ज्ञानादि के पतन रूप लक्षण वाला और संक्लिश्यमान .परिणाम वाला होने से ज्ञानादि संक्लेश कहा है । इससे विपरीत ज्ञानादि,की शुद्धि रूप लक्षण वाला और विशुद्धयमान परिणाम करने वाला असंक्लेश कहलाता है। ' प्रायश्चित्त के दस भेद होते हैं परंतु यहां तीसरा स्थानक होने से तीन भेद ही कहे गए हैं।
... जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं तओ अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ तंजहा- हेमवए, हरिवासे, देवकुरा। जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं तओ अकम्म-भूमीओ पण्णत्ताओ तंजहा - उत्तरकुरा, रम्मगवासे, एरण्णवए। जंबूमंदरस्स दाहिणेणं तओ वासा पण्णत्ता तंजहा - भरहे, हेमवए, हरिवासे। जंबूमंदरस्स उत्तरेणं तओ वासा पण्णत्ता तंजहा - रम्मगवासे, हेरण्णवए, एरवए। जंबूमंदरदाहिणेणं तओ वासहर पव्वया पण्णत्ता तंजहा - चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे। जंबूमंदरउत्तरेणं तओ वासहर पव्वया पण्णत्ता तंजहा - णीलवंते, रुप्पी, सिहरी। जंबूमंदरदाहिणेणं तओ महादहा पण्णत्ता तंजहा - पउमदहे, महापउमदहे, तिगिंछदहे। तत्थ णं तओ देवियाओ महिड्डियाओ जाव पलिओवमठिईयाओ परिवसंति तंजहा - सिरी हिरी थिई, एवं उत्तरेण वि णवरं केसरिदहे महापोंडरीयदहे पोंडरीयदहे, देवियाओ कित्ती बुद्धी लच्छी। जंबूमंदरदाहिणेणं चुल्लहिमवंताओ वासहरपव्वयाओ पउमदहाओ महादहाओ तओ महाणईओ पवहति तंजहा - गंगा सिंधु रोहितंसा। जंबूमंदरउत्तरेणं सिहरीओ वासहरपव्वयाओ पोंडरीयदहाओ महादहाओ तओ महाणईओ पवहंति तंजहा
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