Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से औदारिक पुद्गल परावर्त ऐसा कहा जाता है ?
उत्तर - हे गौतम ! जिस कारण से औदारिक शरीर में रहते हुए जीव से औदारिक शरीर योग्य द्रव्यों को औदारिक शरीर रूप से ग्रहण किये हुए और छोड़े हुए होते हैं अतः हे गौतम ! औदारिक पुद्गल परावर्त ऐसा कहा जाता है। इसी प्रकार शेष ६ पुद्गल परावर्त कहना।
"ओरालिय पोग्गल परियट्टे णं भंते ! केवइ कालस्स णिव्वट्टिजइ ? गोयमा ! अणंताहिं • उस्सप्पिणी ओसप्पिणीहिं" -
प्रश्न - हे भगवन् ! औदारिक पुद्गल परावर्त कितने काल से पूर्ण होता है ?
उत्तर - हे गौतम ! अनंत उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल से पूर्ण होता है। इसी प्रकार दूसरे पुद्गल परावर्त के लिये भी समझना चाहिये।
अन्यत्र इस प्रकार भी कहा है - ओराल १ विउव्वा २ तेय ३ कम्म ४ भासा ५ ऽऽणुपाणु ६ मणगेहिं ७ । फासेवि सव्व पोग्गल, मुक्का अह बायर परट्टो॥१४६ ॥
- १ औदारिक २ वैक्रिय ३ तैजस ४ कर्म (कार्मण) ५ भाषा ६ आनप्राण और ७ मन-इन सात वर्गणा रूप सभी पुद्गलों को स्पर्श कर-ग्रहण कर छोड़े हो उसे बादर पुद्गल परावर्त कहा जाता है।
दव्वे सुहुमपरियट्टो, जाहे एगेण अह सरीरेणं । लोगंमि सव्वपोग्गल, परिणामेऊण तो मुक्का ॥१४७ ॥
- जब एक औदारिक आदि शरीर से सर्व लोक संबंधी परमाणुओं को भोग कर छोड़ा हुआ हो तब सूक्ष्म द्रव्य पुद्गल परावर्त्त होता है। द्रव्य पुद्गल परावर्त की तरह ही क्षेत्र, काल और भाव पुद्गल परावर्त होते हैं जिनका विस्तृत वर्णन पांचवें कर्मग्रंथ आदि में दिया गया है।
सम्पूर्ण संसार परिभ्रमण काल में एक जीव को आहारक शरीर की प्राप्ति उत्कृष्ट चार बार ही होती है इसलिए आहारक पुद्गल परावर्तन नहीं बनता है।
तिविहा पण्णवणा पण्णत्ता तंजहा - णाणपण्णवणा दंसणपण्णवणा चरित्तपण्णवणा। तिविहे सम्मे पण्णत्ते तंजहा - णाणसम्मे दंसणसम्मे चरित्तसम्मे। तिविहे उवघाए पण्णत्ते तंजहा - उग्गमोवधाएं उप्यायणोवधाएं एसणोवघाए। एवं विसोही।तिविहा आराहणा पण्णत्ता तंजहा - णाणाराहणा दंसणाराहणा चरित्ताराहणा। णाणाराहणा तिविहा पण्णत्ता तंजहा - उक्कोसा मज्झिमा जहण्णा। एवं दंसणाराहणा वि, चरित्ताराहणा वि।तिविहे संकिलेसे पण्णत्ते तंजहा - णाणसंकिलेसे दंसणसंकिलेसे
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