Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 अनिष्ट यावत् मनोहर, अमनोहर तक कहना चाहिए। रूप दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - गृहीत और अगृहीत यावत् मनोहर, अमनोहर तक दो दो भेद कहने चाहिए। इसी प्रकार गन्ध, रस, स्पर्श के विषय में भी कहना चाहिए। इस प्रकार शब्द, रूप, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श इन सब में प्रत्येक में गृहीत, इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ और मनोहर ये छह-छह आलापक कह देने चाहिए। ,
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने पुद्गल के विषय में वर्णन किया है। दो कारणों से पुद्गल मिलते हैं - १. स्वयमेव - जैसे बादलों आदि की तरह पुद्गल एकत्रित होते हैं और २. पर के द्वारा - जैसे मनुष्य के द्वारा पुद्गल एकत्रित किये जाते हैं। इसी प्रकार दो-दो कारणों से पुद्गल बिखरते हैं, सडते हैं, गिरते हैं, विध्वंस-विनष्ट होते हैं। दो प्रकार के पुद्गल कहे हैं - १. भिन्न (विघटित) और २. अभिन्न - जो संघात को प्राप्त हैं, भिन्न नहीं हुए हैं। दो प्रकार के पुद्गल कहे हैं - १. भिदुरधर्मा - जो भिदुरत्व धर्म वाले (स्वभाव से ही भिन्न-नष्ट होने वाले) हैं वे भिदुरधर्मा कहलाते हैं। जैसे - कपूर आदि २. नोभिदुरधर्मा - जो भिदुरत्व (भेदन) धर्म वाले नहीं है जैसे वज्र आदि।
दो प्रकार के पुद्गल कहे हैं - १. परमाणु पुद्गल - जो अत्यंत सूक्ष्म है उसे परमाणु कहा जाता है। प्रत्येक स्कन्ध का मूल कारण परमाणु है वह परमाणु प्रवाह से नित्य और पर्याय से अनित्य है। परमाणु पुद्गल एक रूप, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श वाला होता है। परमाणु पुद्गल अनंत हैं। परमाण आकाश के प्रदेश भी हो सकते हैं। अतः सत्रकार ने परमाण के साथ पदगल शब्द का प्रयोग किया है जिसका अर्थ होता है पुद्गल के परमाणु न कि अन्य के परमाणु। २. नो परमाणु पुद्गल अर्थात् स्कन्ध - दो प्रदेशी (व्यणुक) स्कन्ध से ले कर महास्कन्ध पर्यन्त सभी पुद्गल इसके अर्न्तगत आ जाते हैं। ___पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं - १. सूक्ष्म - जो पुद्गल सूक्ष्म परिणाम वाले एवं शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष लक्षण विशिष्ट चार स्पर्श वाले हैं वे सूक्ष्म पुद्गल कहलाते हैं। भाषा आदि चार वर्गणा के पुद्गल सूक्ष्म है। २. बादर - जो पुद्गल बादर परिणाम वाले और पांच आदि स्पर्श वाले हैं वे बादर पुद्गल कहलाते हैं। अर्थात् पांच स्पर्शी स्कंध से लेकर आठ स्पर्शी स्कंध पर्यंत सभी पुद्गल बादर है। जैसे औदारिक आदि वर्गणा के पुद्गल।
दो प्रकार के पुद्गल कहे हैं - १. बद्धपाश्व॑स्पृष्ट - जो पुद्गल रेत की तरह शरीर से स्पृष्ट (स्पर्शित) हैं वे पार्श्वस्पृष्ट और उनसे बंधे हुए शरीर में क्षीर-नीर (दूध और पानी) पानी की तरह मिले हुए गाढ सम्बंध किए हुए पुद्गल बद्ध पार्श्वस्पृष्ट कहलाते हैं। घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य पुद्गल बद्ध पार्श्व स्पृष्ट कहलाते हैं। घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य पुद्गल बद्ध पार्श्व स्पृष्ट होते हैं। २. नो बद्ध पार्श्व स्पष्ट - जो पार्श्वस्पृष्ट पुद्गल बद्ध
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