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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - के - क्या, अणंता - अनंत, सासया - शाश्वत, बोही - बोधि-जिनधर्म की प्राप्ति, णाणबोही - ज्ञानबोधि, दंसणबोही - दर्शन बोधि, बुद्धा - बुद्ध-बोधि से युक्त पुरुष, णाणबुद्धा - ज्ञान बुद्ध, सणबुद्धा - दर्शन बुद्ध, मोहे - मोह से, मूढा - मूढ। ... - भावार्थ - हे भगवन् ! यह लोक क्या है? जीव है या अजीव है? हे गौतम ! यह लोक जीव और अजीव स्वरूप है। हे भगवन् ! इस लोक में अनन्त क्या है? हे गौतम ! जीव और अजीव , अनन्त है। हे भगवन् ! इस लोक में शाश्वत क्या है? हे गौतम ! जीव और अजीव शाश्वत है। बोधि अर्थात् जिनधर्म की प्राप्ति दो प्रकार की कही गई है यथा - ज्ञानबोधि और दर्शनबोधि। बुद्ध यानी बोधि से युक्त पुरुष दो प्रकार के कहे गये हैं यथा - ज्ञान बुद्ध और दर्शन बुद्ध। इसी प्रकार मोह से मूढ भी दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा - ज्ञान के आवरण से आच्छादित सो ज्ञानमूढ और दर्शन के आवरण से आच्छादित सो दर्शन मूढ यानी मिथ्यादृष्टि।
विवेचन - जो दिखाई देता है वह लोक है। यह लोक पंचास्तिकाय मय होने से जीव और अजीव रूप है। ऐसे पंचास्तिकायमय लोक को जिनेश्वर भगवंतों ने अनादि अनंत कहां है। जीव और अजीव अनंत है। जीव और अजीव द्रव्यार्थ की अपेक्षा शाश्वत है। अनंत और शाश्वत जो जीव है वे बोधि लक्षण और मोह लक्षण रूप स्वभाव से बुद्ध और मूढ होते हैं। बोधि अर्थात् जिनधर्म का लाभ-प्राप्ति । ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से ज्ञान की जो प्राप्ति होती है वह ज्ञान बोधि कहलाती है और दर्शन मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से सम्यग् रूप से होने वाली दर्शन की प्राप्ति अर्थात् श्रद्धा का लाभ दर्शन बोधि है। बुद्ध यानी बोधि से युक्त पुरुष दो प्रकार के कहे गये हैं -
१.जान बोधि वाला जान बद और २. दर्शन बोधि वाला दर्शन बद्ध। जैसे बोधि और बद्ध दो प्रकार के कहे हैं उसी प्रकार मोह और मूढ भी दो प्रकार के कहे हैं। जो ज्ञान को आच्छादन करे वह ज्ञान मोह अर्थात् ज्ञानावरणीय का उदय और जो सम्यग्-दर्शन को आच्छादित करे वह दर्शन मोह। मूढ दो प्रकार के कहे हैं - १. ज्ञान के आवरण से आच्छादित ज्ञान मूढ और दर्शन के
आवरण से आच्छादित दर्शन मूढ कहलाता है। ____णाणावरणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - देसणाणावरणिज्जे चेव सव्वणाणावरणिग्जे चेव। दरिसणावरणिजे कम्मे एवं चेव। वेयणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - सायावेयणिज्जे चेव असायावेयणिज्जे चेव। मोहणिजे कम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - दंसणमोहणिज्जे चेव चरित्तमोहणिजे चेव। आउए कम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - अद्धाउए चेव भवाउए चेव। णामे कम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - सुहणामे चेव असुहणामे चेव। गोए कम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा- उच्चागोए चेव
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