Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
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रइयाणं तओ लेस्साओ पण्णत्ताओ तंजहा - कण्हलेस्सा णीललेस्सा काउलेस्सा। असुरकुमाराणं तओ लेस्साओ संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ तंजहा - कण्हलेस्सा णीललेस्सा काउलेस्सा एवं जाव थणियकुमाराणं । एवं पुढविकाइयाणं, आउवणस्सइकाइयाण वि । तेकाइयाणं वाउकाइयाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिंदियाणं वि तओ लेस्सा जहा णेरइयाणं । पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं तओ लेस्साओं संकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ तंजहा - कण्हलेस्सा णीललेस्सा काउलेस्सा। पंचिंदियतिरिक्ख जोणियाणं तओ लेस्साओ असंकिलिट्ठाओ पण्णत्ताओ तंजहा - तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा। एवं मणुस्साण वि। वाणमंतराणं जहा असुरकुमाराणं । वेमाणियाणं तओ लेस्साओ पण्णत्ताओ तंजा - तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा ॥ ६४ ॥
कठिन शब्दार्थ - संकिलिट्ठाओ - संक्लिष्ट, असंकिलिट्ठाओ - असंक्लिष्ट ।
भावार्थ - नैरयिकों में तीन लेश्याएं कही गई हैं। यथा - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या । असुरकुमारों में तीन संक्लिष्ट लेश्याएं कही गई हैं। यथा- कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या । इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमारों तक दस ही भवनपति देवों में तीन संक्लिष्ट लेश्याएं पाई
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हैं। इसी प्रकार पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय में तीन संक्लिष्ट लेश्याएं पाई जाती हैं क्योंकि इनमें देव भी उत्पन्न हो सकते हैं इसलिए तेजोलेश्या भी पाई जाती है ।
ते काय, वायुकाय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौरिन्द्रिय जीवों में नैरयिक जीवों के समान कृष्ण, नील और कापोत ये तीन लेश्याएं पाई जाती हैं। इन में देव उत्पन्न नहीं होते हैं। इसलिए संक्लिष्ट विशेषण नहीं लगाया गया है। तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय जीवों में तीन संक्लिष्ट लेश्याएं कही गई हैं। यथा - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या । तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय जीवों में तीन असंक्लिष्ट लेश्याएं कही गई हैं। यथा - तेजो लेश्या, पद्म लेश्या, शुक्ल लेश्या । इसी प्रकार मनुष्यों में भी तीन संक्लिष्ट और तीन असंक्लिष्ट ये छहों लेश्याएं पाई जाती हैं। वाणव्यन्तर देवों में असुरकुमारों की तरह तीन संक्लिष्ट लेश्याएं पाई जाती हैं। वैमानिक देवों में तीन लेश्याएं कही गई हैं। यथा - तेजोलेश्या, पद्म लेश्या और शुक्ल लेश्या ।
विवेचन - असुरकुमारों में तीन संक्लिष्ट लेश्याएं कही है जबकि असुरकुमार आदि में चार लेश्याएं होती है। चौथी तेजोलेश्या संक्लिष्ट नहीं होती है इसलिये यहाँ उसका ग्रहण नहीं किया गया है। तिर्हि ठाणेहिं तारारूवे चलिज्जा तंजहा विकुव्वमाणे वा परियारेमाणे वा ठाणाओ वा ठाणं संकममाणे तारारूवे चलिज्जा । तिहिं ठाणेहिं देवे विज्जुयारं करेजा
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