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श्री स्थानांग सूत्र
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उववज्जंति,देवा जक्खा णागा भूया सम्ममाराहिया भवंति, अण्णत्थ समुट्ठियं उदगपोग्गलं परिणयं वासिउकामं तं देसं साहरंति, अब्भवद्दलगं च णं समुट्ठियं परिणयं वासिउकामं णो वाउयाओ विहुणेइ, इच्चेएहिं तिहिं ठाणेहिं महावुट्टिकाए सिया । ९० । . कठिन शब्दार्थ - अप्पवुट्टिकाए - अल्पवृष्टि (अवृष्टि), देसंसि देश में, पएसंसि प्रदेश में, उदगजोणिया - उदक योनि के, उदगत्ताए अप्कायपने, वक्कमंति- उत्पन्न होते हैं, विउक्कमंतिचवते हैं, सम्ममाराहिया सम्यग् प्रकार से आराधना की हो, समुट्ठियं समुत्थित उठे हुए, वासिकामं - बरसने योग्य, उदगपोग्गलं - उदक पुद्गल - मेघ को, परिणयं - परिणत - उदक अवस्था को प्राप्त, अब्भवद्दलगं - बादलों को, विहुणेइ नष्ट कर देती है, महावुट्टिकाए महावृष्टि ! . भावार्थ - तीन कारणों से अल्प वृष्टि या अवृष्टि होती है यथा उस देश अथवा प्रदेश में बहुत उदक योनि के जीव यानी पानी के जीव और पुद्गल अप्कायपने उत्पन्न नहीं होते हैं और नहीं चवते हैं। इसी बात को सूत्रकार दूसरी तरह से कहते हैं कि अप्काय में उत्पन्न होने के लिए दूसरी योनि में से चवते नहीं हैं और अप्काय में उत्पन्न नहीं होते हैं। देव नागकुमार आदि भवनपति देव यक्ष और भूत, इनकी सम्यक् प्रकार से आराधना न की गई हो, इससे रुष्ट होकर वे उस देश में उठे हुए उदक अवस्था को प्राप्त हुए बरसने योग्य मेघ को दूसरे देश में ले जाते हैं और उठे हुए उदक अवस्था को प्राप्त हुए बरसने योग्य बादलों को प्रचण्ड वायु नष्ट कर देती है या इधर उधर बिखेर देती है। इन तीन कारणों से अल्पवृष्टि या अवृष्टि होती है। तीन कारणों से महावृष्टि होती है यथा उस देश या प्रदेश में बहुत से अष्काय के जीव और पुद्गल- अप्कायपने उत्पन्न होते हैं और चवते हैं तथा चवते हैं और उत्पन्न होते हैं। वैमानिक और ज्योतिषी आदि देव, यक्ष नागकुमार आदि भवनपति देव और भूत यानी वाणव्यन्तर देव, इनकी सम्यक् प्रकार से आराधना की हुई होती है तो वे खुश होकर दूसरी जगह उठे हुए उदक अवस्था को प्राप्त हुए बरसने योग्य मेघ को उस देश में ले आते हैं और उसी देश में उठे हुए उदक अवस्था को प्राप्त बरसने योग्य बादल वायु से नष्ट नहीं किये जाते. हैं एवं इधर उधर बिखेरे नहीं जाते हैं। इन तीन कारणों से महावृष्टि होती है।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में अल्पवृष्टि और महावृष्टि के तीन-तीन कारण बताये हैं। अल्प वृष्टि काय का अर्थ है - अल्प यानी थोडा अथवा नहीं बरसना, वृष्टि यानी पानी का नीचे गिरना, काय यानी जीव का समुदाय अर्थात् आकाश से गिरती अप्काय अथवा बेरसने के स्वभाव युक्त जो उदक है वह वृष्टि, उसका समुदाय वह वृष्टिकाय कहलाता है।
उदक योनिक - उदक रूप परिणाम की कारण भूत योनियां, उदके योनिक अर्थात् पानी' उत्पन्न करने के स्वभाव रूप जीव और पुद्गल ।
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