Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 ऊनोदरी १ आठ २ बारह ३. सोलह ४ चौबीस और ५ एकतीस कवल तक क्रम से अल्प आहार आदि संज्ञा वाली पांच प्रकार की है। कहा है --
अप्पाहार १ अवड्डा २ दुभाग ३ पत्ता ४ तहेव किं चूणा ५। अट्ठ १ दुवालस २ सोलह ३, चउवीस ४ तहेक्कतीसा य५॥१२० ॥
- १. एक से आठ कवल पर्यंत अल्पाहार २. नौ से बारह कवल पर्यंत अपार्द्ध ३. तेरह से सोलह पर्यंत द्विभाग ४. सतरह से चौबीस कवल तक प्राप्त और ५. पच्चीस कवल से इकत्तीस कवल तक किंचित् न्यून ऊनोदरी जाननी। आहार की तरह पानी की भी ऊनोदरी समझनी चाहिये।
. भगवती सूत्र में भी कहा है - "बत्तीसं कुक्कुडिअंडगपमाणभेत्ते कवले आहारमाहारे माणे पमाणपत्तेति वत्तव्वं सिया, एत्तो एक्केण वि कवलेण ऊणगं आहारमाहारेमाणे समणे णिग्गंथे
णो पगाम रस भोइत्ति वत्तव्वं सिय" - कुकडी के अंडक प्रमाण वाला अर्थात् मुख में जो आसानी से रखा जा सके ऐसे बत्तीस कवल आहार करता हुआ प्रमाण प्राप्त ऐसी वक्तव्यता होती है इससे एक कवल भी न्यून आहार करने वाला श्रमण निग्रंथ प्रकाम (अत्यंत) रस भोजी नहीं कहलाता है।
३. भाव ऊनोदरी - कषायों को घटाना भाव ऊनोदरी कहलाता है।
शल्य - शल्यते-जिससे बाधा (पीडा) हो उसे शल्य कहते हैं। कांटा भाला आदि द्रव्य शल्य है। भावशल्य के तीन भेद हैं - १. माया शल्य २. निदान (नियाणा) शल्य और ३. मिथ्या दर्शन शल्य।
१. माया शल्य - कपट भाव रखना माया शल्य है। अतिचार लगा कर माया से उसकी आलोचना न करना अथवा गुरु के समक्ष अन्य रूप से निवेदन करना अथवा दूसरे पर झूठा आरोप लगाना माया शल्य है।
२. निदान शल्य - राजा, देवता आदि की ऋद्धि को देख कर या सुन कर मन में यह अध्यवसाय करना कि मेरे द्वारा आचरण किये हुए ब्रह्मचर्य, तप आदि अनुष्ठानों के फलस्वरूप मुझे भी ये ऋद्धियाँ प्राप्त हों । यह निदान (नियाणा) शल्य है।
३. मिथ्यादर्शन शल्य- विपरीत श्रद्धा का होना मिथ्यादर्शन शल्य है।
भिक्षु प्रतिमा - भिक्षु प्रतिमा यानी साधुओं का अभिग्रह विशेष + इसके बारह भेद हैं जिसमें एक मासिकी आदि मासोत्तरा (एक एक मास की वृद्धि वाली) सात हैं, तीन (आठ से दस) प्रत्येक सातसात अहोरात्रि के परिमाण वाली हैं, एक (ग्यारहवीं) अहोरात्रिकी परिमाण वाली है और एक (बारहवीं) एक रात्रिकी परिमाण है। कहा है -
मासाई सत्तंता पढमा १ बिइ २ तइय ३ सत्त राइंदिणा १० । अहराई ११ एगराई १२, भिक्खू पडिमाण बारसमं ॥१२२ ॥ - पहली भिक्षु पडिमा एक मास की, दूसरी दो मास की यावत् सातवीं सात मास की है आठवीं,
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