Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ३ उद्देशक ३
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गणधर यानी गण को धारण करने वाला और गणावच्छेदक हैं। जिनके प्रभाव से यह इस प्रकार की दिव्य देव ऋद्धि दिव्य देवकान्ति दिव्य देवानुभाव उपार्जित किया है, प्राप्त हुआ है और मेरे सन्मुख उपस्थित हुआ है इसलिए मैं मनुष्य लोक में जाऊँ और उन कल्याणकारी, मङ्गलकारी, देवस्वरूप, ज्ञान रूप, पूज्य आचार्य आदि को वन्दना करूँ, नमस्कार करूँ, उनका सत्कार करूँ, सन्मान करूँ और उनकी पर्युपासना यानी सेवा भक्ति करूँ। देवलोक में तत्काल नवीन उत्पन्न हुआ देव दिव्य कामभोगों में अमूछित यावत् अनासक्त बने हुए उस देव को ऐसा विचार होता है कि मनुष्य लोक में ये ज्ञानी, तपस्वी, स्थूलभद्र मुनि की तरह अति दुष्कर दुष्कर ब्रह्मचर्य पालन रूप क्रिया के करने वाले मुनि हैं अतः मनुष्य लोक में जाकर उन पूज्य मुनियों को वन्दना करूँ, नमस्कार करूँ यावत् उनकी सेवा भक्ति करूँ। ऐसा विचार कर मनुष्य लोक में आता है। देवलोक में तत्काल नवीन उत्पन्न हुआ देव दिव्य. कामभोगों में अनासक्त होता है उसको ऐसा विचार उत्पन्न होता है कि मनुष्य लोक में मेरी माता, पिता, पुत्र यावत् पूत्रवधू आदि हैं इसलिए जाऊं और उनके सामने प्रकट होऊँ। जिससे वे मेरी ऐसी यह दिव्य देव ऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवानुभाव जो कि मुझे मिला है, प्राप्त हुआ है तथा मेरे सामने उपस्थित हुआ है उसे देखें। इन उपरोक्त तीन कारणों से देवलोक में तत्काल नवीन उत्पन्न हुआ देव मनुष्य लोक में शीघ्र आने की इच्छा करता है तो शीघ्र आने के लिए समर्थ हो सकता है। ___ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में देवलोक में उत्पन्न देव के मनुष्य लोक में आ सकने और नहीं आ सकने के तीन तीन कारण बताये हैं। जो इस प्रकार है - .
१. देवलोक में उत्पन्न होते ही देव दिव्य कामभोगों में लीन हो जाता है वह मनुष्य संबंधी कामभोगों का आदर नहीं करता, अच्छा नहीं समझता, उन्हें पाने के लिये निदान भी नहीं करता इस कारण वह मनुष्य लोक में नहीं आता।
२. देवलोक के.दिव्य सुखों में आसक्त होने के कारण मनुष्य संबंधी कामभोगों का प्रेम टूट जाता है अत: वह मनुष्य लोक में नहीं आता।
___३. देवलोक में उत्पन्न देव सोचता है कि मैं कुछ समय इन दिव्य सुखों को भोग लूं तत्पश्चात् मनुष्य लोक में जाऊंगा। इतने में तो मनुष्य लोक का काफी समय व्यतीत हो जाता है और तब तक अल्प आयुष्य वाले उसके संबंधी मनुष्य काल कर जाते हैं अतः वह देवलोक को छोड़कर मनुष्य लोक में नहीं आता। इससे विपरीत देवलोक में नवीन उत्पन्न हुआ देवता तीन कारणों से दिव्य कामभोगों में मूर्जा, गृद्धि एवं आसक्ति नहीं करता हुआ शीघ्र मनुष्य लोक में आने की इच्छा करता है और आ सकता है -
. १. वह देवता यह सोचता है कि मनुष्य भव में मेरे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर गणी, गणधर एवं गणावच्छेदक हैं। जिनके प्रभाव से यह दिव्य देव ऋशि हिय देव गति और दिव्य देव
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