Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
और नैरयिकों को छोड़ कर यावत् वैमानिक देवों तक कहना चाहिए। नैरयिकों में और एकेन्द्रिय जीवों में बाहरी उपकरण नहीं होता है। इसलिए उनका यहाँ ग्रहण नहीं किया है। अथवा उपधि तीन प्रकार की कही गई है। यथा - सचित्त, अचित्त और मिश्र । इस प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिक देवों तक निरन्तर सभी दण्डकों में कह देना चाहिए। परिग्रह तीन प्रकार का कहा गया है। यथा कर्म रूप परिग्रह, शरीर रूप परिग्रह और बाहरी बर्तन वस्त्र आदि परिग्रह। इस प्रकार असुरकुमारों से यावत् वैमानिक तक कह देना चाहिए किन्तु एकेन्द्रिय और नैरयिकों को छोड़ देना चाहिए क्योंकि उनमें बाहरी उपकरण रूप परिग्रह नहीं होता है। अथवा परिग्रह तीन प्रकार का कहा गया है। यथा सचित्त, अचित्त और मिश्र । इस प्रकार नैरयिकों से यावत् वैमानिकों तक निरन्तर सभी दण्डकों में कह देना चाहिए ।
विवेचन - अवसर्पिणी काल का पहला आरा उत्कृष्ट, दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवाँ मध्यम और छठा आरा जघन्य कहलाता है।
उत्सर्पिणी काल का पहला आरा जघन्य और दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवां मध्यम तथा छठा आरा उत्कृष्ट कहलाता है।
खड्ग (तलवार) आदि से बिना छेदे हुए पुद्गल समुदाय से चलित होते हैं इस कारण से अच्छिन्न पुद्गल ऐसा कहा है। आहार रूप से जीव द्वारा ग्रहण किये जाते हुए अर्थात् जीव द्वारा आकर्षित करने से पुद्गल स्वस्थान से चलित होते हैं। इसी प्रकार वैक्रियमाण - वैक्रिय करण की अधीनता से पुद्गल चलित होते हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान पर हाथ आदि से संक्रमण किये हुए पुद्गल चलित होते हैं।
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उपधि - जिसके द्वारा जीव पोषा जाता है वह उपधि है । उपधि तीन प्रकार की कही है - १. कर्म की उपधि - कर्मोपधि २. शरीरोपधि ३. बाह्य शरीर से बाहर के भांड मिट्टी के भाजन (पात्र) मात्र - कांसा आदि धातु के भाजन भांड मात्रोपधि है। दंडक की अपेक्षा असुरकुमार आदि के तीन उपधि कही गई है। परन्तु नैरयिक और एकेन्द्रिय का वर्जन किया है क्योंकि उनके उपकरणों का अभाव होता है। कितने ही बेइन्द्रिय आदि के उपधि दिखाई देती है इस कारण से उपधि तीन प्रकार की कही है- १. संचित्त उपधि - जैसे पत्थर आदि का भाजन, २. अचित्त उपधि वस्त्र आदि और ३. मिश्र उपधि - प्राय: ( शस्त्रादि से) परिणत पत्थर का भाजन । नैरयिकों में सचित्त उपधि शरीर है। अचित्त उपधि - उत्पत्ति का स्थान है और मिश्र उपधि उच्छ्वास आदि के पुद्गल सहित शरीर है।
परिग्रह - स्वीकार किया जाता है वह परिग्रह अथवा मूर्च्छा परिग्रह है। उपधि की तरह परिग्रह भी तीन प्रकार का है। नैयिक और एकेन्द्रिय जीवों में भांडादि परिग्रह संभव नहीं है।
तिविहे पणिहाणे पण्णत्ते तंजहा- मणपणिहाणे वयपणिहाणे कायपणिहाणे ।
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